________________
श्रीमाबूजीकी पूजा.
७५७
सा० ० सा० सार० ॥ तुंही है जिनंद चंद आदि कार तुं । जगत नधार सार अविकारं ॥ [अ० ज० ॥ सार० ॥ १ ॥ समकित धारसार सुक्खकारं । मनमथ जीतकार राग वास्तुं । रा० न० । सा० । तुहीं है मुनिंद द हितकारं । गुणको निधांन सार भरतारतुं । ज०म० ॥ सारसार० ॥ २ ॥ सुर नर देव सार किरतारतुं । प्राबूके जिनंद चंद मुनिसारतुं । मु०न० सार० । • परमाधार सार जिनता । सुमति विचार धार सुरककारर्तुं । सु० न० सार० ॥३॥ ी प्रबूगिरेंद्राय तीर्थसि० श्रीमादीश्वराय वाजित्रगुणवरणन पूजा ॥ ११ ॥ * ॥ ॥ ॥
॥ *॥
॥ ॥ अथ नृत्य पूजा ॥ ॥
॥ * ॥ दूहाः ॥ सुरसुंदर हरखैकरी । सजसो सिणगार । ताल मृदंगहि लेयनें । जगतकरे बहुसार ॥ १ ॥ जावधरी प्रजु आागले । अष्टापद गिरसार । रावणनें मंदोदरी । नृत्यकरे गुणधार ॥२॥ ढाल ॥ जिनगुणगावत सुरसुंदरी रे जि० ॥ ए चाल ॥ जगतिकरे सब सुरसुंदरी रे ॥ ज० ॥ सुरसुंदरी रेदेवा ॥ सु०न० ॥ हीर चीर पाटंबर पहरी । रम कम घुग्घर नाद करी रे | न०सु०॥१॥ चंदवदन मनमोहन गहरी । मृगनैनी शृंगारधरी रे ॥ ज० ॥ बांह बाजूबंध कंचन चूकी । बेसर मोती लाल जरीरे ॥ ० ० ॥ २ ॥ परखरणी सुर मन हरणी । मोहनी रूप अनूप धरीरे ॥ ज० ॥ चंपकवरणी मनवस करणी । प्रा गुणगावै खरीरे ॥ ० ० ॥ ३ ॥ जिनगुण गावत हरख वधावत । थेई थेई नाचत नावधरी रे ॥ ज० ॥ अशरण शरण तुंही जगदी पक । तुहि निरंजन सुरक करीरे ॥ ० ० ॥ ४ ॥ जविजन ध्यावत हरख नपावत । गावत गुण सुनराग करी रे ॥ ज० ॥ गजगत गामनी सब मिल नामनी । उम उम नाचत सुर महरी रे ॥ ज० सु० ॥ ५ ॥ अष्टापद गिरराव
राजा । मंदोदरि जिम जगतकरी रे ॥ ज० ॥ सुमति सदा जिनके गुणगा वत । लुल २ जिनजीकै पायपरीरे ॥ ० ० ॥ ६ ॥ ी आबूगिरेंद्राय तीर्थ सिरोमणाय श्रीमदीश्वराय गीतनृत्यगुणवरणन पूजा ॥ १२ ॥ * ॥ ॥ * ॥ कलश रागरेखता ॥ ॥
॥ * ॥ जिनंदजश आजमैं गायो ॥ ए चाल || गिरंदजश प्राजमें