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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
गायो । टतां हरख प्रतिपायो । गि० ॥ आबूगिरिंद सुखदायो । सघन न रुख बायो । खरा जिनचंद सुरिराजा । तपै जग मानज्युं ताजा गि० ॥ १ ॥ मा कल्यांण के पाजा || बिविध गुण ज्ञांनके नाजा ॥ धरम विशाल तसुनंदा ॥ कहै युं सुमति सुख कंदा ॥ गि० ॥ २ ॥ संवत नगणीस चालीसे । प्रेमधर अधिक सुजगी ॥ जो तुम देव जगदीसे । फलैसब प्रास निस दीसे ॥ गि० ३ ॥ देवांके देव मनजाया ॥ पूजतां संपदा पाया ॥ वीकाणें सहरमें राजै ॥ जगत जस ताहरो गाजै ॥ गि० ४ ॥ आदि जिन पूज मुख काजै ॥ नमत प्रभु पाप सहनाजै ॥ सकल जन जावसैं ध्यावै ॥ मोहन मुनि प्रेम गावै ॥ गि० ॥ ५ ॥ इति श्री प्राबू गिरि श्री आदीस्वर जिन गुण महिमा वर्णन सुमति मंरुणजी पाठककृत पूजा संपूर्णम् ॥ ॥ * ॥ अथ प्राबूजीको स्तवन ॥ # ॥
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॥ ॐ ॥ न २ नाटक नाचै यादी सरकै प्रागैलो प्र० ॥ चाल ॥ पूजो पूजो तीरथ पूजो ॥ प्राबू तीरथ पूजोलो ॥ पूजो० ॥ इंद्र पूजे चंद्रपूजे इसम रन दूजोजो ॥ पू० ॥ अध्यातम जोगीसरध्यावै ॥ दरसण जागै मीठोलो ॥ पू० प्र० १ ॥ सुर जन मोहे मुनिजन मोहै ॥ लागो रंग मजी ठगेलो ॥ पू० ॥ तेजपाल वस्तपाल करायो । मोहन मंदर दीठोलो ॥ पू० २॥ बारै कोमी मुद्रा ऊपर जागा तेपन लाखैलो ॥ ०॥ इतनो धन खरच्यौ नवि प्राणी ॥ संघ सकलनी साखेलो || पू०३ ॥ च्यारसै सठ सुंदर सोहै । जिन वर बिंब नदारीलो ॥ पू० ॥ सुमतिसदा जिनवर जशगावै ॥ तीरथनी बलिहारीजो ॥ पू० । ० ४ ॥ इति आबू गिरपदं ॥ १ ॥
॥ ॐ ॥ अथ सहस्रकूटजी पूजा लि० ॥ ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ श्री जिनवर प्रणमी करी । जावधरी भरपूर । अनु जव गुण निरमल करी । वंडुं जिनवर सूर ॥ १ ॥ नवै श्री जिनराजनी । सं ख्या आगम जेह । गुरुमुख जे इमसांगली । ते सुंणजो धरं नेह ॥ २ ॥ स हसकूटनी थापना | करियै विध विसतार । पूजरचावो नवनवी । अष्ट दि वस सुविचार ॥ ३ ॥ श्री सेनुंजा ऊपरे । सहसकूटनो नाव । ते देखी ज वि वरधरो । सेवो जिनवर पाव ॥ ४ ॥ प्रष्ट द्रव्य लेईकरी । तन मन न