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श्री सहसकूटजीकी पूजा
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ऊलाव | गीतनृत्य प्रभू आागलै । कर पूजन गुणगाव ॥ ५ ॥ सधव सुहागण सुंदरी । सऊसोलै सिणगार । प्रनु आगे मंगल करें। पावे हर खार ॥ ६ ॥ निरमल जल कलशा गरी । स्नात्र करै नविसार । सहस कूट जिनराजनी । महिमा अधिक उदार ॥
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आज यो चाह । जीवमा नाच० (ए चाल ) ॥ * ॥
ज० ॥ इसपर गिरा
तीश चौवीशी
२ ॥
परमातम परमे
॥ * ॥ जहरख पार । जिनवर पूजन करियै रे ॥ बलि ऐवत पंच । इ दश खेत्रतणा जिणसंच || आज० ॥ दक्षिण उत्तर भरते जाए । अतीत अनागतनें वर्तमान ॥ १ ॥ तां जिनवर थाय । सातसै वीश अधिक कहवाय ॥ बंदु एह । तारण तरण नविक गुण गेह ॥ ० ॥ शर जांण । एहनी आणकरो परमांण ॥ ० ॥ जिनसम अवरन दूजो देव | सुरवर मुनिवर करतासेव ॥ ० ॥ ३ ॥ अतिशयवंत महंत नदार | सुर नर मोह देख दीदार ॥ ० ॥ वारिजानं एहनी वार हजार । मुऊ प्रीतम एही अवधार ॥ ० ॥ ४ ॥ करता नूमंगल नृपगार । जगनायक जिनवर जयकार ॥ ज• ॥ जावघरी वंदु जगसार । सुमति सदा दीजै किरतार ॥ ० ॥ ५ ॥ श्री परमा० । श्री सहसकूट जिनेंद्राय जलं यजा महे ॥ ९ ॥ * ॥
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॥ ॐ ॥
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० ॥ पंचनरत
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॥ * ॥ अथ द्वितीय चंदन पूजा ॥
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| * ॥ ( दूहा ) ॥ वर्त्तमान जिन वंदिये । तीन चौवीसी मांह । रुष जादिक जिनपूजतो । दिन २ हरखाह ॥ १ ॥ कुंकम चंदन मृगमदे |
र सुगंध विशाल | श्री जिनवर पूजन करो । नावधरी गुणमाल ॥ २ ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ बतो नधारयो मोहि चहिये जिनंदराय (ए चाल ) ॥ ॥ वर्तमान जिनपूजन करकै । तन मनको सब पाप हरो रे ॥ वर्त्त ० ॥ रुपन अजित शंभव अभिनंदन । सुमति सदा जिनराज खरोरे ॥ वर्त्त° ॥ १ ॥ पं दम सुपास जिनंद सुसेवो। चंद्रप्रभु चित चाह धरोरे । सुविध शीतल जिन अंतर जांमी । श्री श्रेयांस जिनेंद्र वरोरे ॥ वर्त्त ॥ २ ॥ बारमो वाशपूज्य जिन नमनें । मिथ्यातम सब दूर करो रे । विमल अनंत धरम जिन नमतां ।