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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. शघ सिघको मार नरोरे ॥ वर्त० ॥३॥ शांति कुंथु अर मलि जिनेसर।। मुनिसुव्रत दिलध्यांन करोरे। नमि नेमी श्रीपाश जिनेसर । बीर सदा मुऊ नाथ खरोरे॥२०॥४॥ए चौवीशे जिन गुण गावत । संपद सुखकी सेज वरोरे। सुमति कहै जिन पूजन करके । कुल २ जिनके पाय परोरे ॥ २० ॥ ॥५॥ शी परमा० । सहसकूट जिनेंद्राय चंदनं यजामहेः॥ ॥
॥ ॥ अथ (३) पुष्पमाल पूजा॥४॥ ॥॥ (दूहाः)॥ पुष्पमाल गुंथी करी । कंठ ठवो जिनराज । सुम ति सुगंधी विसतरै । लान अनंत समाज ॥ १ ॥ अतीत चौवीसी वैदिये।
आंणी नाव प्रधान । मनवंगित पूरण सदा । परतिख कलप समान ॥२॥ ('ढाल )॥॥श्री चंद्राप्रनु जिनवर साहिब । सुणिये मैंवारि० (एचाल )॥
॥ ॥ केवल ज्ञांनीनै निरबांणी । सागर महा जशकारा (मैं वारि जानं सा० ) के० ॥ विमलनाथ निरमल गुणधारक । सर्वानुनूति नदा रा॥ (मैं० स० ) के० ॥१॥श्रीधर दत्त जिनवर नपगारी। दामोदर अवि कारा ॥ में० दा॥अधिक सुतेज जिनेसर सांमी । मुनि सुब्रत गुणकारा ॥२॥ (में° मु०) के०॥२॥श्री सुमती शिवगति जिनपूजो । अस्तंग नमी मुनि प्यारा ॥ (में० अ० ) ॥ अनिल यशोधर जिनवर सेवो । किरतारघ म नुहारा ॥ ( में कि० ) के० ॥३॥ श्री जिनराज जिनेसर वंदो । शुधमती शिवकारा ॥ (में० सु०)॥ स्पंदन संप्रति जिन चौवीशे । सुमति सदा गुण कारा ॥ ( में० सु० ) के० ॥ ४ ॥ ॥ क्षी परमा० श्री सहसकूट जिनेंद्राय पुष्पं यजामहेः॥३॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
- ॥ ॥ अथ (४) धूप पूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा)॥नावी जिनवर वंदिये। द्रव्य नाव सुविचार । पद मनान आदिक प्रनु । वदूं वारं वार ॥१ ॥ कृष्णागर मृगमद तगर । अं वर तुरक लोबांन । धूप करो जिन राजनें। पावो मुख असमान ॥ २ ॥ (ढाल)॥ संनव जिन सुखकारीरे। वाला संन (एचाल)॥ ॥
॥ॐ॥ पदमनान मुखकारी रे वाला॥०॥(हारे होरेवाला)वारीजालं वार हजारी रेवाला ॥ प०॥ सूरदेव जिन वंदु नावै । सुपारस ब्रह्मचारीरे ।