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श्रीदादाजीकी राग तच पूजा. ७९५ हेरे । चा० २। दश हज्जार कुटंब संग नृप कू । श्रावग धर्म धरावत हेरे। चा० ३॥ दया मूल आज्ञा जिनवर की। वारे ब्रत नचरावत हेरे॥चा०॥ एसे च्यार राज समकित धर। खर तर संघ वणावत हेरे। चा० ४। कुष्ट जलंधर दौण नगंदर । केश्यक लोक जीवावत हेरे। चा। ब्राह्मन कत्री अरु माहेश्वर । ओश वंश पसरावत हेरे। चा० ५॥ तीस हजार एक लख श्रावग। महिमा अधिक रचावत हेरे॥ चा०॥ कहत राम झद्धिसार गुरु कू। फल पूजा फल पावत हेरे ॥चा०६॥ श्लोक ॥ फनसमोचसदाफल कर्कटै। सुसुखदै किल श्रीफल चिन]। शकल० ॥ नक्षी प० फलं निर्वि पामिते स्वाहाः॥ * ॥
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॥ ॥अथ वस्त्र सुगंधी पूजा॥॥ - ॥ ॥ दूहा ॥ वस्त्र अत्तर गुरु पूजना। चोवा चंदन चंपेल । पुस्मन सब सज्जन हुवे । करे सुरंगा खेल ॥१॥ मनमो किमही न बाजे हो कुंथु जिन ।। ए चाल ॥ लखमी लीला पावेरे सुंदर। लखमी लीला पावे । जे गुरु वस्त्र चढावरे। सुं० । सुजस अत्तर महकावेरे ॥ सुं० ॥रजन शीश नमावेरे। मुं० । ए आंकणी ॥ दरिया वीच जीहाज श्रावग की। डूबण खतरे आवे । साचे मन समरे सद गुरु । मुख की टेरे सुणावेरे॥ मुं०।१॥वाचं ताव्याख्यानसूरीश्वर । पंखी रूपे थावे । जाय समंद में ज्याज तिराई। फिर पीग जब आवेरे॥ मुं० २॥ पूरे संघ अचरज में नरीया। गुरु सब बात सुणावे ॥ एसें दादा दत्त कुशल गुरु । परचा प्रगट दिखावरे । मुं०३। बोथर गूजरमल श्रावग की । दादा कुशल तिरावे । सुक्खसूरि गुरु शमय सुंदर की। ज्याज अलोप दिखावेरे ॥ मुं०४ल० ॥ वारे से इग्यारे दत्तसूरि । अजमेर अण शण गवे । नपज्या सोधर्मा देवलोके । सीमंधर फुरमावरे सुं०५॥ इक अवतारी कारज सारी । मुक्ति नगर में जावे । कुशल सूरि देरार नगरे । नुवनपति सुरथावरे॥ मुं०६॥ फागुण वदि अम्मा वश सीधा । पूनम दरश दिखावे । मणिधारी दिल्ली मे पूज्यां । शंकट सुपने नावेरे । सु० ७। रथी नठी नही देख वादशा । वांही चरण पधरावे । वस्त्र अतर पूजा सद गुरु की। धिशार मन जावेरे। मुं० ।