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७९४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. . । सु०र० ६ । मंत्र कला गुरु अतिशय धारी । ऐसो धर्म दीपायो॥ शघिसार पर किरपा कीनी । साचो इलम बतलायो॥सु० २०७॥ श्लोक ॥ सरल तंकुल के रति निर्मले ॥ प्रवर मौक्तिक पुंज वदूज्वलैः सकल० ॥ जी श्री प० अक्तं निविपामिते स्वाहाः॥६॥ * ॥
॥2॥ ॥ ॥ अथ नैवेद्य पूजा॥ ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ नैवद्य पूजा सातमी । करो नविक चित चाव ॥ गुरु गुण अगाणित कुण गिणे । गुरु जव तारण नाव ॥ १ ॥ राग कल्याण । तेरी पूजा वणी हे रसमे॥ए चाल ॥ हो गुरु किया अमुर कुं वश में । एकणी। वम नगरी मे आप पधारे । सानेला धसमस में। ब्राह्मन लोक बमे अनिमा नी। मिलकर आया सुसमे ॥ हो गु० १॥ महिमा देख सक्या नही गुरु की नरे मिथ्यात्वी गुस में । मृतक गऊ जिन मंदिर आगे। रखदी सनमुख चसमे । हो गु० २॥श्रावग देख नये आकुलता । कहे गुरु से कसमें । चिंता दूर करी हे संघ की। गन छ चाली मसमे ॥हो गुरु०६ ॥ मरी गळ • जीती कीनी । लोक रह्या सब हसमे । जाके गाय पमी रुद्रालय। संघ नया सब खु समे । हो गु० ४। ब्राह्मण पांव पम्या सब गुरुके। देख तमासा इसमे । हुकुम नगवेंगे शिर ऊपर । तुम शंतति की दिशमे ॥ हो गु० ५॥ नमस्कार हे चमत्कार कू। कीनी पूजा रसमें । कहे राम शघिसार गुरु की । आनंद मंगल जस में ॥ हो गु०६॥श्लोक ॥ बहु विधे श्वरनिर्वटकैर्यकैः॥ प्रचुरसर्पि पिप क सुखज्ज के। शकल। जी श्रीं प० नैवानिर्विपामिते स्वाहाः ॥७॥
॥ ॥ अथ फल पूजा॥॥ ॥ ॥दोहा॥ फल पूजा में फल मिले । प्रगटे नवे निधान।चिहुंदिश कीरत विस्तरे । पूजन करो सुजान ॥ १ ॥ रथ चढ जाऽनंदन आवत हे ॥ ए चाल ॥ चालो संघ सब पूजनदूं। गुरु शमरयां सनमुख आवत हे रे, चा० ५॥ ए आंकणी ॥ आनंदपुर पहन को राजा । गुरु शोला सुण पावत हेरे ॥ चा० ॥ ज्या निज परधान बुलाने । नृप अरदास सुणावत हेरे। चालान जांण गुरु नगर पधारे। नूपत आय वधावत हेरे । चा० । राज कुमर को कुष्ट मिटायो । अचरज तुरत दिखावत