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७९६ . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥श्लोक ॥ अखिल हीर शुचि नव चीर के। प्रवर प्रावरणे खलुगंधतः ।श कल० ॥झी श्रीप० वस्त्रं चोवा चंदन पुष्पसारं निर्विपामिते स्वाहाः॥ ..
अथ धजा पूजा॥१॥ ॥दोहा॥ ध्वज पूजा गुर राज की। लहके पवन प्रचार । तीन लोकके शिखर पर । पोहचे सो नर नार ॥ १ ॥ चाल । जिन गुण गावत सुर सुंदरी रे । ए चाल ॥ ध्वज पूजन कर हरख नरी रे॥ध०॥ सज सोले शिणगार सहेल्यां । श्री सदगुर के द्वार खरीरे । ध० । अप हर रूप सुतन सुक लीनी । ठम २ पग ऊणकार करीरे॥ध०१॥गा वत मंगल देत प्रदाणा । धन २ आनंद आज घरीरे । ध० ॥ निर्धन • लखमी वगसावत । पुत्र विना जाके पुत्र करीरे॥ध० २॥ जो जो पर तिख परचा देख्या। सुणो नविक दिल वीच धरीरे। ध०॥ फतेमल्ल नमगतीया श्रावग। पहली शंका जोर करीरे ध० ३। परतिख देखू जब में जाणूं । प्रग टया ततखिण तरण तरीरे॥ध०॥ पुष्प माल शिर केशर टीका । अधर श्वेत पोशाख करीरे ॥ध०४॥ मांग २ बर बोलें बाणी ॥ फरक वतावो गुरु मेघ फरीरे। ध० ॥ फरक नगायो दोय लाख पर । तेरी महिमा नित्त हरीरे॥ ध० ५॥ गैनचंद गोलेहा कू ते । परतिख दीना दरस फरीरे॥ध०॥ विक्र मपुर में धुंन तुमारा। चित्र करावत सुर सुंदरीरे ॥ध०६॥ थांनमल्स लूण्यां पर किरपा। लखमी लीला सहज वरीरे। लखमी पति दूगम की सा हिब । हुंमी की जुगताण करीरे। ध०७॥जो नपगार करया तें मेरा । दीनी सनमुख अमृत जरीरे॥ध० तेरी कृपा से सिधी पाई। जागे जस अरु नागे जरीरे। ध० ८॥ नूखा भोजन तिसिया पाणी । परत हाजरी देव परीरे॥ ॥ध०॥ विमुख वखत पर सहाय हमारे । शघिसारकी गरज सरीरे। ध० ९॥ श्लोक ॥ मृड मधुरध्वनि खिंखणी नाद कै । ध्वजविचित्रित विसृतवासकै। शकल० । शिखरो परि ध्वजां आरोपयामि स्वाहाः॥॥ ॥ ॥
॥अथ अर्घ पूजा कलस॥॥ ॥2॥ दूहा ॥ नट्टारक पदवी मिली। जीते वादी वृंद । कंठ विराजत सरस्वती । जग में श्री जिन चंद॥ ॥
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