________________ जाहिरलबर ! (जसकों) माक मारफत, पुस्तक मेजणेमें आनेगा। काक मारफत, रुपियादेके पुस्तक लेशकेगा। नाटपेट पत्र लेने में न पावैगा | // (तथा) इसीन मलका मोटा, कोटा, प्रकारों (जो कोई) पुस्त क लपाने निमत्त भेजेगा (तो) जलदी उपाकर भेजा देने में आवैगा // 3 // पुस्तक मिलनका ठिकाना // 1 // सुबीकानेर। ठि। बोलपाशरे (जैन लक्ष्मीमोहनशाला) जैन महोपाध्याय श्री लक्ष्मी प्रधानजी मोहनलालजी गणिः पासे।। 83 - // 2 // सु। कलकत्ता। वि। अफीमचौरस्ते / 62 / जैन विद्या शाला अध्यक्त पंमित श्री जयचंद रावतमल मुनिः पासे॥ 23 // // 3 // मु। मुंबई, / ठि। विचला जोईवामा श्रीचिंतामणिजीके मंदिर जैन पाठशाला उ / श्री मुक्तिकमलजी मंत्री धर्मकल्याणजी पाहे / / // पुस्तक नाम।। 10 मा // 1 ॥रलसागर प्रथम नाग. // 2 // रत्नसागर दूसरा जाग. // 3 // खरतरगड तपगह पांच प्रतिक्रमण विधिः 14 // 4 // खरतर राई, देवसी, भतिक्रमण विधिः // 25 // श्रीजिन पूजा संग्रह। // 6 // योग स्नाकर वैद्यकसार // 7 // स्तवल संग्रह // इसपुस्तकां सिवाय / सीमशी माणकका नगपाकी ( तथा.) पं० श्रीधर सिक्लालके बापाकी पुस्तकां पण जनमें भावेगा (और) हमारे पाठशालाकी पुस्तकां पण ये दो बापामें मिल सकेगा इच्छा होय उहाँले मंगायलेना (तथा) रत्नसागर, दोर्नुनागका (10 पुस्तक) जो एकटीलेवेगा (उसको ) ज्यानके मदतखाते एक पुस्तक ज्यादा मिलेगा। सही !!! . | यह पुस्तक / इंग्रेजी 1867 शालके, 15 भनके कायदे रजष्टः किया गया। इस पुस्तकपर मालकनें अपना हक कला है। पीए 0.2430 लाईटल ऊपरी 10 लिला यो मासुख है s