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रत्नसागर.
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॥ ॐ ॥ या घरी में रंग वन्यो है झांरे । ( या० ) तत्वारथकी चर चा पाई । साधर्मीको संग (व० या० ) ॥ १ ॥ श्री जिनराज दयानिधि भेटे । हरष यो अंग अंग । सी विध जव २ मांहै मिलीयो । धर्मप्र सादनंग (व० या० ) ॥ २ ॥ इति पदम् ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ राग मलार ॥
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॥ * ॥ चिहुं नर वदरिया वरसे ( आलीरी ) । अब घरर घरर घन ग रजै ॥ (चि०) ॥ नेम प्रभु गिरनार सिधाए । देखणकुं जीया तरसै ॥ ( चि०) ॥ १ ॥ दापुर मोर सोर सुन श्रवणें । नयनजए घन जरसे ॥ ( चि० ) ॥ २ ॥ ढुंढत ढुंढ सकल वन वनमें । कबहु पीयानां दरसै ॥ ( चि० ) ॥ ३ ॥ सो इ सफल जाऐंगे सजनी । दिवस घरी जिन फरसे ॥ ( चि० ) ॥ ४ ॥ ॥ * ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ मोरवा पपइया बोले पीठ २ घनमें । नेम पीया रहे सहसाव नमें ॥ ( मो० ) निशि अंधीयारी कारी वीजुरी रावै । दूजी विरह
कुल इनमें ॥ ( मो० ) ॥ १ ॥ फिरमिर वरषत गरजत दाडुर ॥ सोरकरत रहे नदीयां रनमें। ( मो० ) ॥ २ ॥ आणंद ए सम देखण चाहे ॥ राजुल नइ है बैरागण बिनमें || ( मो० ) ॥ ३ ॥ इतिपदम् ॥ ॥ ॥ राग विहाग ॥ ॥
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॥ * ॥ समऊ नर जीवन थोरो । थोरो थोरो थोरो । ( स० ) || पल २ आयु घटत बिन २ ही । गलत जात जैसें नरो ॥ (स० ) ॥ १ ॥ या तनको तोही न नरोसो | बिन मासो बिन तोरो। जो कबु करै सो अबही करलै । पुन परहो जिम मोरो ॥ ( स० ) ॥ २ ॥ तन धन आदि सकल सामग्री गरज २ घनघोरो । रूपचंद त्रिसनाको बांध्यो । जान बूऊ जयो जोरो ॥ (स० ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥
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॥ * ॥ मत कर मान गुमान । योवन धन ठगहै । (म० ) वेलूकी