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राग रागण्यांका स्तवन
४५७ आपणकी अपघात लही॥ (हे वां० )॥४॥ग्निमें रंक गिनकमें राजा। अकल कथा किम जांण कही। उलट पलट वाजी नटसीकी । नवल सरब में व्याप रही॥ (हे माय वां)॥५॥ इति पदम् ॥ ॥॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ ह्मांनु प्यारो लागे जी । थारो उपदेस। ( ह्मांनुं ) ॥ ग्यांन जगावण औगुण मेटण । संशय रहै न लेस ॥ (मां० ) ॥१॥ मोहतिमिर पुःख दूर करनकुं । गत वढावत हेत । चंद फतै नित एही चा है। समकित सुखको खेत ॥ (मां० )॥२॥इति पदम् ॥ ॥ ॥
| | पुनः॥ ॥ ॥ ॥ मेरो पीया परसंग रमत है। में केसें मनावूरी ( मे० ) । सो तन संग रैन दिन रमतां। मोहि न बुलावैरी ( मे०)॥ १० ॥ हाहा कर त सषी पश्यां परतहुं। कोई पीया मिलावैरी । विरहानल अति उसह पी या विन। कोन बुझावैरी (मे०)॥ २ ॥ सुमता संग ले अनुन्नव आ यो। सब परठ सुनावैरी । ग्यान सार प्यारी दो हिलमिल । सोरठ गावैरी (मे०)॥३॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥*॥ ॥ ॥
॥ ॥ (राग सोरठ मलार)॥ ॥ ॥ॐ ॥ वरषित वचन ऊरी हो (सुगुरु मेरे) (व०) श्रीश्रुत ग्यांन गगन तै ऊमटी । ग्यांन घटा गहरी हो (सुगुरु मेरे) (व०)॥१॥स्याद बाद नय विजुरी चमकित । देखत कुमति मरी। अरथ विचार गुहर धुनि गरजित । रहत न एक घरी हो॥ (सुगुरु मे० )॥२॥ श्रधानदी चढी अति जोरै। सुच सुनावधरी । सुन्नर परयो सुमता रससागर । समकित नृमि हरीहो ॥ (मुगुरु मेरे) ॥ ३ ॥ प्रगटे पुन्य अंकूरे चिहुं दिस। पा प जवास जरी । चातक मोर पपइया नविजन । बोलत उक्तिनरी हो॥ (सुगुरु मेरे व०)॥ ४ ॥ दया दान बत संयम खेती । नविक किसान करी । हरषचंद सुर नर शिव सुखकी । सहज सुनाव फली हो ॥ (मु० व० ) ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥