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रत्नसागर. रासीमें । सुख पुखसे जीया रुलत फिरै (म० के० ) । ए रिपु कर्मवैरी न टकावै । जाहीसें मेरो प्राण मरे ॥ (म० कै.)॥ २ ॥ जो जीव सुखकी बंग चाहै । प्रनु सेव्यां में सब काज सरै ॥ (म० के० )॥ ३ ॥ इति ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ . * ॥राजरी वधाई वाजे (महा.)। सरणाई सिरै नोबत बा जै। घनज्युं गाजै ॥ ( महा० )१॥इंद्राणी मिलमङ्गल गावै । मोतीयन चोक पुरावै ॥ ( महा०)॥२ ॥ सेवग प्रनुजीसें अरज करै । चरणारी सेवा प्यारी लागे ॥ (महा०)॥३॥इति ॥ * ॥
॥ ॥ (राग प्रमाणो)(१)॥ ॥ ॥ ॥ मोतिनकी माला जिनगलसोहै ( मोति०) मस्तक मुगुट सोहे मनमोहन । कुंमल लागत वाला ॥ (जि०)॥१॥नजोरी नजो तुम लो क सहिरके। नहीय नजै सो काला । माणकपर प्रनु महिर करो तो। अपणा विरुद संनाला (जि०)॥२॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥
॥ (राग सोरठ) (१)॥ ॥ ॥ * ॥रहे तुम आज क्युं जीवन पुराय ॥ (रहे० ) ॥ जोव जीवन सखीयनमें प्यारी । हारी हाहा खाय ॥ (२०)॥१ ॥ अविरत धुंबट पट नघारी। अनुन्नव मुख निरखाय । एते परनी मान न मेलै । मूलै व्याज वढाय ॥ ( रहे०)॥२॥जव परणित परिपाक इतै पर। आई धाई मा य। अति आग्रह सब ग्यान सारकुं। लीने कंठ लगाय ॥ (रहे० )॥३॥
॥ॐ॥ पुनः॥ ॥ ॥ * ॥ हेमाय वांकमी करमगति जायना कही । चिंतत और वनत कड औरे। होनहार सो होय रही ॥ (हेमाय वां०) ॥१॥ सकल साज समीयो व्याहनकुं। राजुलकों तब चाह जई। सुनी नेम गिरनार सिधाए । वदन विलख मुरमाय रही ॥ (हेमाय वां) ॥ २ ॥ शीता स तीयोंही पति लगता । जांनत सकल मही।। फूलो दोष दियो जब रुघ पति । पावक कुंममें धीज दही॥ (हे० वां० ) ॥३॥ कायक सुदृष्टी श्रे णक राजा। निज सुत कोणक बंधठई । सुध बुध विसरगई नरपतकी