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राग रागण्यांका स्तवन.
| | पुनः॥॥ ॥ ॥ तुममा प्रनु इण दिल वसणावे । तेंमा तो गुण सुर गावं दाहो ॥ (प्र०)॥१॥ संतके सागर गुणके आगर । जोही ध्यावै सो पावं दाहो ॥ (प्र०)॥२॥ तुमहो तत्वज्ञानके दाता । लविजन ताप मिटावं दाहो॥ (प्र०)॥ कहैं जिनचंद ऐसे प्रनुमेरे । चरणकमल चित लावं दाहो (प्र०)॥३॥इति पदम् ॥ *
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥ पुनः॥॥ ॥ ॥ हम जानतहै तुम तारोगे । (हम) नानिराय मरुदेवी को नंदन । मेरी और निहारोगे ॥ (हम० ) ॥१॥ आदि जिनेसर अन्तर जामी । खामी कबुन विचारोगे ॥ (ह° ) ॥२॥ जगजीवन जगतारक तुमहो। एही विरुद संनारोगे ॥ (ह°)॥३॥ श्रीजिन सौनाग्य सुरिंद कुं साहिब । नवजल पार नतारोगे॥ (ह° )॥४॥इति पदम् ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ .. ॥ॐ ॥ पंथीमा पंथ चलैगो । प्रनु नजलै दिन च्यार ॥(पं० ) कूठी काया फूठी माया। झूठो सब परवार ॥ (पं० )॥ १ ॥ बालपणेमें खेल गमायो। जोवन माया जाल ॥ (पं०)॥ २ ॥ बूढापण आयो धरम न पायो। पाने करत पुकार ॥ ( पं० ) ॥ ३ ॥ क्याले आयो क्याले जा सी। पापपुण्य दोय लार ॥ (पं०)॥ ४॥ दया मया कर पाश ऐवंती। अब तेरोही आधार ॥ (पं०)॥५॥ इति पदम् ॥ १॥
॥ ॥ पुनः ॥ ॥ ॥ ॥ तेवीशमा जिनराज । जोमै थाहरे कौन जुमै गो (ते० )। अस्वसेन तात वामादेवी माता । तूं तारण संसार ॥ (जो०)॥१॥ कमठ विमारण नागकुं तारण । संनलाव्यो नवकार ॥ (जो०)॥२॥वि बुध कुशल कर जोमीनें वीनवै॥ लव २ देज्यो दीदार ॥ (जो०) ॥ ३ ॥
॥ ॥ (राग खंनायची)॥॥ ॥ * ॥ कैसें काज सरै महाराजा बिन (कैसें ) भ्रमत २ लख चौ