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२४ जिनचैत्य थुई, स्त० चौमाशी देववंदन. १८१ ण श्री शांति जिणंदा । साहिबा जिनराज हमारा । मोहना जिनराज हमा रा॥ सा॥ (ए आंकणी) त्रिकरण शुध चरण तुज विलगो । पलक मा व न रहुं हिवे अलगो ॥ सा० ॥१॥ विलगो ते अलगो केम जाशे । 5 ड्यो पण तुझे नवि बंडाशे ॥ सा० ॥ प्रनु तुझे कोश्शुं नेह न लावो । वी तराग कही सवि समजावो ॥सा० ॥२॥ बीजा अवर कहो एम समजे पण गेरु दीधाथी रीफे ॥ सा०॥ बालकना हग्थी नवि चाले । जे मांगे ते मावित्र आले ॥सा०॥३॥ नक्तिखांची मन मांहे आएयो । सहज स्वनावे पण में जाण्यो ॥ सा०॥ माहरे एक प्रतिज्ञा साची । तुम पदसे वा अंकें जाची ॥ सा०॥४॥ कबजे आव्यातो बूटीजें । जेह मुह मांगे तेहज दीजें ॥सा०॥ अन्नेद पण जो मनमां मलशो । कबजेथी प्रनु तो नीकलशो ॥ सा०॥५॥ अख्खय नाव निधी तुम पास । आपी दासने पूरो आश । ज्ञान विमल समकित प्रनुताई। दीधी साहेब एह वडाई ॥सा०॥
॥ ॥ अथ श्री कुंथुनाथ जिन चैत्यवंदन ॥१॥ ॥॥श्रावण वदि नवमी दिनें सबष्थी चविया । वदि चनदश वैशा खनी जिन' कुंथु जणीया। वदि पंचमी वैशाखनी लीये संजम जार । शुदि त्रीजें चैत्रहतणी लहे केवल सार । पडवा दिन वैशाखनीए पाम्या अ विचल ठगण । बहा चक्री जयकर ज्ञानविमल सुख खाण ॥१७॥ इति ॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥॥ ॥ ॥ जिन कुंथु दयाला गग लंउन सुहाला । जस गुण शुन मा ला कंठे पेहरो विशाला। नमति जवि त्रिकाला मंगल श्रेणि माला। त्रिनुव न तेजाला ताहरे तेज माला ॥१७॥ इति कुंथुनाथ जिन स्तुति ॥ ॥
॥ॐ॥अथ श्री अरनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॥ ॥ सरवारथथी आविया फागुण शुदि बीजें । मृगशिर शुदि द शमी जण्या अरदेव नमीजे । मृगशिर शुदि एकादशी संजम आदरीयो काती नऊल वारसें । केवल गुण वरीप्रो। शुदि दशमी मृगशिर तणी ए शिवपद लहे जिननाथ । सत्तम चक्रीने नमुं नय कहे जोमी हाथ ॥१८॥