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रत्नसागर.
॥ * ॥ अथ श्री धर्मनाथ जिन चैत्यवंदन ॥
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॥ ॐ ॥ वैशाख सुदि सातमे । चविया श्री धर्म । विजय थकी माह मास नी । शुदि बीजें जनम । तेरस माहिं कुजली । लीयें संजम नार । पोषि पूनमे केवली | गुणना जंडार । जेठी पांचमि कजली ए । शिवपद पाम्या जेह । नय कहे ए जिन प्रणमतां । वाधे धर्म सनेह ॥ १५ ॥ ॥ * ॥ थथाय प्रारभ्यते ॥
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॥ * ॥ धर्म जिन पतीनो ध्यान रस मांहें जीनो । वररमण शचीनो । जेहने वर्ण लीनो । त्रिभुवन सुख कीनो लंबने वज्र दीनो । नवि होय ते दीनो जेहने तुं वसीनो ॥ १ ॥ * ॥ इति ॥ १५ ॥
॥ ॐ ॥
॥ अथ श्री शांतिनाथ चैत्यवंदन ॥
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॥ * ॥ नाद्रवा वदि सातम दिने । सवघ्थी चविया । वदि तेरस जेंठें जया । दुःख दोहग समीया । जेठि चनदस वदि दिने । लीये संजमवेम । केवल नऊल पोसनी । नवमी दिन खेम । पंचम चक्री परवडा ए । शोल मा श्रीजिनराज । जेठ वदि तेरशें शिव लह्या । नय कहे सारो काज ॥ १६ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥
॥ * ॥ जिन पति जयकारी पंचमो चक्रधारी । त्रिभुवन सुखकारी सप्त जय तिवारी । सहस चनसठनारी चन्द रत्नाधिकारी । जिन शांति जीतारी मोहे हस्ति मृगारी ॥ १ ॥ शुभ केशर घोली मांहें कर्पूर चोली । पेहरी सीत पटोली वासिये गंधधूली । जरी पुष्पपटोली टालीयें दुःख होली । सवि जिनवर टोली पूजीयें नाव लोली ॥ २ ॥ शुभ अंग इग्यार तेम नपांग वलि बार। मूल सुत्रते चार नंदी अनुयोगद्वार । दशपयन्न नदार बेदखद व्रत्ति सार । प्रवचन विस्तार जाप्य नियुक्तिसार ॥ ३ ॥ जय जय जय नंदा जैन दृष्टी सुरिंदा | करे परमानंदा टालता दुःखदा । ज्ञानविमल सुरिंदा साम्य माकंद कंदा | वरविमल गिरिंदा ध्यानथी नित्य नदा ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ स्तवन प्रारंभः ॥ ॥
॥ * ॥ (मोतीमानी देशी ) सकल समीहित सुरतरु कंदा । शांति कर