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सिघागरी स्तवन ॥ * ॥ अथ कार्तिक चौमाशाधिकार लि० ॥ * ॥ ॥ ॥ कार्तिक महिनेमें मिती कार्तिक सुद १४ कैदिन। सब मन्दर दर्शन करनेकों जाना। व्याख्यान सुणना । सामायकादिक धर्मकृत्य कर ना (इत्यादिक) सर्व अधिकार पूर्वे, आसाढ चौमाशे तुल्य जानके, कार्ति क चौमाशैका सेवन करै ।। इति कार्तिक चौमाशा सेवनविधिः॥४॥ ॥॥अथ कार्तिक पूर्णमाशीका अधिकार लि०॥ * ॥
॥ प्रथम कार्तिक बद १ से सेवेंजरास सुणे निवी (वा) एका शणा, व्याशणादिक तप करै। दोनुं टंक पमिक्कमणो करै। देव वंदनादिक करै । (क्षी श्री सिक्षेत्र अनन्तसिघाय नमः ) इसीको एक जाप स दा करै । शक्ति होय (तो) सिघ गिरी यात्रा करनेको जावै । काती पूनमके दिन विस्तार संयुक्त सिगिरीकी पूजा करावै । अहाही महोचव करै । बिस्तारसें देवबंदनादिक बिधि करै ( २१.) वेर सेवेंजरास सुरें।
झी श्री सिध्देत्र अनन्त सिघाय नमः । इसी पदसें ( २१ ) जेती देवै । (कदास ) सिघ गिरी जाणे की सक्ती न होय (तो) जहां सिघ गिरीका पटमंड्या होय । नहां महोचव संयुक्त दर्शन करनेको जावै । पूजा दिक सब विधि करै । उ नत्त करके (वा) चतुर्थ नत्त करके । इस पर्व को आराधन करै। गुरुनक्ति करै। साहमी वठल करै । ( इत्यादिक) विधिसंयुक्त सिमगिरीकी सेवना करनेसें । सर्ब अशुन्न कर्म विध्वंस होके मंगलमाला प्रवर्तन होय ॥ ॥ (इस दिन) श्री द्रावम बारखिल्ल प्रमुख द शकोमि साधु सिधिस्थानक प्राप्त नए ( जिससें) इस दिन (जो) धर्मकृत्य किया हुआ, निस्संदेह दशकोमि गुणा फलै । (इस ) चरतोत्रमें सिधगिरी के समान, कोई नत्तम तीर्थ नहिं । (में पिण सन् ) नगणीसतीशमें। चैत्रीपून मको यात्रा करता हुवा । सब जगवंतकै बिंबोंका दरशण करके गिणती किया (सो) बारै हार । तीनसै । अहावन १२३५८ बिंब हुआ। और बहुत ठिकाणे चरणोंकी स्थापना है । अनन्ता साधु अणसण लेके परम पदकों प्राप्त नए हैं (इसीसें) जो आसन नव्वी जीव होंगे(सो) सुघनावसें