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रत्नसागर. इस तीर्थकों सेवन करेंगे। और जो सेवन करते हैं । नसी पुरुषोंकों नम स्कार है । नसी पुरुषोंके जीवतव्य धन्य है ॥॥
॥8॥ ॥ ॥ अथ सिद्धगिरीके स्तवन लि० ॥ * ॥ ॥8॥ (देशी गरबानी)। ते दिन क्यारे आवसी हे । (जोरे वहिनी)। जासु सिघाचलनी जात ( मोरी सहीयां हे.) । पाजै चढतां प्रेम सुंहे । (जोरे वहिनी)। गाइयै गुण अखियात । ( मोरी सहीयां हे । तेदि० )॥१॥ अदनुत ऊंचो देहरो हे । (जोरे वहिनी) मूल नायक आदिनाथ। (मोरी सहीयां हे )। नोली नगत नली परै हे। (जोरे०) निरख्यां होय सनाथ । (मोरी० ते.)॥२॥ नाही निरमल नीरसुं हे । (जोरे०) पहिर खीरोदक चीर । (मोरी०) केसर नरीय कचोलमी हे। (जोरे०) पूजसुंमुगुण सुधीर । (मोरी ते)॥३॥ रूमी रायण गहमीहे । ( जोरे०) आदि जिणंद न दार। (मोरी०) तिहां जगनाथ समो सरया हे । (जोरे०) पूरब निनाएं बार । (मोरी० ते)॥४॥ण गिर वरियै ऊपरा हे। (जोरे० )। सीधा साधु अनंत । (मोरी०) चौमाशे रह्या दोय जिनवरा हे । (जोरे०) अजि त जिणेसर शांति । ( मोरी ते)॥५॥ चेलणा तलाई सिघ सिला हे। (जोरे०) अदभुत नलका कोल। (मोरी०)सिघवम से-जै नदी वहै।(जोरे०) करियै नित रंगरोल । (मोरी० ते)॥६॥ इण झंगर दी थका हे। (जोरे० ) ऊपजे परमानंद । ( मोरी०) गहिरी गिरवर गंहडी हे । (जोरे) चाहै नित जिणचंद (मोरी० तेदि०)॥७॥ इति सिघाचलजी स्तवनम्॥१॥
॥ ॥ पुनः॥१॥ ॥॥आज आपे चालो सहीयो सिद्धाचल गिरजश्यै। सुणि वहनी ए गिरनी महिमा । आदिजिनंद इम नाखी । लरथादिक नरपतिनें आग ल । इंद्रादिक सहु साखीरे (आज०)॥१॥ण गिरवरिय काल अनं ते। साधु अनन्ता सीधा । जनम मरणनां उख.नोमीनें । अमल अखय गुण लीधारे (०)॥२॥ इण गिर सनमुख पगला परतां । आतम सुध सुनावै । कोम नवारा पातिक कीधा । एक पलकमें जावैरे (०) ॥३॥ सासतो तीरथ ए सेठे जो। जोतांलागै मीठो। तीन जुवनमें इण गिर