________________
४१२
रत्नसागर. पडिवासें । पूर्णमासी तक । इकसार पनरै नपवास करै । जो शक्ती न हो (तो) प्रथम सुद पक्की पडवा १ । द्वितीय सुद पक्की दूज २ (ऐसें) अ नुक्रमसें पनरै सुदपदमें तपस्या पूर्ण करै । श्री मुनिमुब्रत स्वामीके पंच कल्याणक प्रावगजित स्तवन पढे । गुरूको संयोग होय (तो) गुरूके पास सुणे॥ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ ॥ ॥ श्रीमुनिसुव्रत स्वामी सर्वज्ञाय नमः॥॥ - ॥ ॥ इसीको (२०००) दो हजार गुणनो करै । और तपस्या ग्रहण करनेकी (तथा) देवबंदनादिककी विधि । पूर्व खुलासा लिख दी नी है । नसी मुजब बिबेकी जीव सब तपस्या की विधि करै । बिधि संयु क्त करने से उत्तम फल मिलता है ॥ ॥ इति पखवासा बिधिः॥॥
||अथ दश पच्चक्खाण स्तवन लि०॥. ॥ ॥ (दूहाः)॥सिघारथ नंदन नमूं । महावीर नगवंत। त्रिगमै बैग जिनवरू । परषदवार मिलंत ॥ १॥ गणधर गौतम तिण समें। पू श्रीजिनराय । दश पचखाण किसा कया। कीयां कवण फल थाय ॥२॥ (ढाल)॥१॥ सीमंधर करज्योमया ( एदेशी)॥श्रीजिनवर इम नपदिशै सांनल गोयम स्वाम । दश पचखाण कियां थकां । लहीयें अविचल ठगम ॥श्री० ॥३॥ नवकारसी १ । बीजी पोरसी २ ॥ साढ पोरसी ३ । पुरमट्ठ ४ ॥ एकासण ५॥नीवी ६॥ कही ॥ एकलगण ७ ॥ देव ढि ॥ (श्री ४)॥दात ८। अंबिल ९ । नपवास १० । ही ॥ एहीज दश पच्चख्खाण । एहना फल सुण गोयमा। जू जूवा करूं वखाण ॥ (श्री०५)॥ रतन प्रना १। शर्कर प्रना २ ॥ वालक ३ । तीजी जाण ॥ पंक प्रना ४। तिम धूम प्रना ५ ॥ तम प्रना ६ । तम तम ७ । ठाम । ( श्री० ६)॥ नरक सात कही एसही। करम कठिन करजोर। जीव करम वस ते सही। नपजै तिण हीज गेर (श्री० ७॥) बेदन नेदन तामना । नूख त्रिषा वलित्रास । रोम रोम पीमा करै। परमाहम्मी तास (श्री० ८) । रात दिवश खेत्रवेदना । तिलनर नहीं जिहां सुक्ख । किया करम जे लोग . वै। पामें जीव बहुक्ख (श्री०९)॥ इकदिनरी नवकारसी। जे करे नाव