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पखवासको स्तवन तपस्या बिधिः ४११ साम । राजलीला सुखनोगवै । पूरै वंचित काम (श्री०) ॥७॥ तब लोगांतिक देवता । आवि जंपै जयकार । प्रनु फागुणवदि बारसे। लीधो संजम जार (श्री) ॥८॥ शुन फागुणवदि बारसै । मनधर निरमल ध्यान । च्यारकरम प्रनुचूरिया । पाम्यो केवलग्यान (श्री०) ॥९॥ (ढाल २) सुखकारण नवियण (एहनी)॥ ततखिण तिहां मिलिया चलिया सुरनर कोमि। प्रजुना पदपंकज प्रणवै वेकरजोमी । वेकरजोडी मचर गेमी समवसरण विरतंत । माणक हेम रूपमय त्रिगडो नत्र त्रय ऊलकंत । सिं हासन वैग तिहां स्वामी चोविह धर्मप्रकासै । बारै परखदा वैठी आगलि सुणे मन नव्हास ॥२४॥ तपने अधिकारै पखवासो तपसार । परिवा थी कीजै पनरह तिथ ऊदार । पनरह तिथि कीजै गुरु मुख लीजै जिस दिन हुवै नपवास । श्रीमुनिमुबत नाम जपीजै वांदी देव नल्लास । तप - ऊजमणे रजत पालणो सोवन पूतलीचंग । मोदक थाल देहरै मूंकी जि नवर स्नात्र सुरंग ॥११॥ तप करिये निरन्तर अहुरव दर्शनी जेम । मनबंबित केरा सुखपामी जै तेम । पुत्र मित्र परिवार परं अति वलनान रतार । जस कीरत सोनाग बमाई महियल महिमा जाण । परनव मुग ति फल लहीयै एतपनें प्रमाण ॥१२॥ थिर थापी चतुर्विध संघ तणो अधिकार । जरुवल प्रमुख नगरादिक करिया विहार । विहार करी प्रतिबो धै खंदक पंचसयां परिवार । कार्तिकसेठ जितसत्रु तुरंगम सुबतनाम कु मार । तीश सहस वरस आऊखो पालै जग दया सार । श्रीसम्मेत सिखर परमेसर पुहता मुगति मकार ॥१३॥ इम पंच कल्याणक थुणिया त्रि नुवन ताय । मुनिसुव्रत स्वामी वीशमो जिनवरराय । वीशमो जिनवर राय जगत गुरु जयनंजण जगवंत । निराकार निरंजन निरुपम अजरामर अ रिहंत । श्रीजिनचंद विनय शिरोमणि सकल चंद गणिसीस । वाचक सम य सुन्दर इम पनणे पूरो मनह जगीस ॥४॥ ॥ ॥ ॥॥ १॥इति पखवासा स्तवन संपूर्णम् ॥ ४४ ॥ * ॥
॥ ॥ अथ पखवासा तप बिधि लि०॥॥ ॥ ॥ प्रथम शुभ दिन गुरूके पास तप ग्रहण करकै मुद (१)