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रत्नसागर. * ॥२॥ जन्म कल्याणक कों (अर्हते नमः) कहीय ( इस दिन) जलयात्रादिक महोडव करके । अष्टोत्तरी स्नात्रादिक करावै । ब स्त्र चढावै ॥ २ ॥ ॥३॥ दिदा कल्याणक कों (नाथाय नमः) कहीये ( इस दिन ) समोसरण निकाले । अशोकवृदादिकके नीचे स्था पन करकै । दिवाको नबव करै । घृत गुम बस्त्रादिक चढावै । शक्तिमा फक दान देवै ॥३॥ * ॥ ४॥ केवल ग्यान कल्याणककों ( सर्वज्ञा य नमः) कहीयै । ( इस दिन ) समोसरणमें नगवंतकों स्थापन करकै । आठ प्रातिहार्य प्रगट करै । नाना प्रकारके नबव करै । बस्त्र आनूषण चढावै । सपेदगोला चढावै ॥४॥ ॥५॥ निर्वाण कल्याणककों (पारं गताय नमः ) कहीयै । ( इस दिन।) निर्वाण कल्याणक के जावगजित नवव करै लामूचढावै ॥५॥ (और ) उछा गर्जापहार कल्याणकका उडव करणा होय तो चवण कल्याणकके नव समान करै ॥६॥ (इसी तर) सर्व कल्याणकके नबव करै । तपस्या पूर्ण होने से । पंचकल्याणक जीकी पूजा करावै । गुरूनक्ति करै । साहमी बबल करै । ( इत्यादिक बिधि संयुक्त यह तपस्या (जो) नव्य जीव करेंगे (सो) अनन्त सुख को प्राप्त होंगे॥ इति पंचकल्याणक तपस्या धिकारः॥ * ॥
॥ॐ॥अथ पख वासैको स्तवन लि० ॥॥ ॥ ॥ सीमंधर करजो मया (एदेशी) जंबुप्रीप सोहामणो । ददि ण भरत नदार । राजग्रही नगरी नली । अलिका पुर अवतार ॥१॥ (श्री मुनिसुबत स्वामी जी)। समरंता सुख थाय। मनवंडित फल पामी यै। दोहग दूरपुलाय ॥२॥ (श्री) राज करै तिहां राजियो । मुमित्र नरेसर नाम । पटराणी पद्मावती । शीलगुणें अनिराम ॥३॥ (श्री) श्रावण ऊजल पूनमै । श्रीजिनवर हरिवंश । माताकुक्ति सरोवरै । अवतरी यो रायहंस । (श्री०) ॥४॥ जेठपढम पद अध्मी । जायो श्री जिनरा य ॥ जनम महोडव सुरकरै । त्रिनुवन हरख नमाय (श्री०) ॥५॥ शामल वरण सोहामणो । निरुपम रूपनिधान । जिनवर लंबन काउवो। वीशधनुष तनुमान (श्री०) ॥६॥ परणी नार प्रनावती । नोगपुरंदर