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पंचकल्याणक गुणनो तपस्या विधि. ४०९ (श्रावण कृष्णपदे)॥४॥ (श्रावण शुक्लपदे)॥५॥ ३॥श्रीश्रेयांसजी पारंगताय० २॥श्रीसुमतिनाथजी परमेष्टि०॥ ७॥श्रीअनंत नाथजी परमेष्टि० ५॥श्रीनेमिनाथजी अर्हते नमः॥ ८॥श्रीनमिनाथजी अर्हते नमः॥ ६॥श्रीनेमिनाथजी नाथाय० ॥ ९॥श्रीकुंथुनाथजी परमेष्टिने नमः॥ ८॥श्रीपार्श्व नाथजी पारंग०॥ (जादवा कृष्णपदे)॥२॥ १५॥श्रीमुनिसुव्रतजी परमे० ॥ ७॥श्रीचंद्राप्रनूजी पारंगता०॥ (नाद्रवा शुक्लपके)॥१॥ ७॥श्रीशांतिनाथजी परमे०॥ ९॥श्रीसुविधिनाथजी पारंग० ॥ ८॥श्रीसुपार्श्वनाथजी परमे०॥ (आश्विन शुक्लप)॥१॥ (आश्विन कृष्णपदे)॥२॥ १५॥श्रीसुविधिनाथजी परमेष्टि०॥ १३॥श्रीमहावीरजी गाप०॥ ॥ ॥ इति पंचकल्याणक संपूर्ण ॥ ३०॥श्रीनेमिनाथजी सर्वज्ञाय नमः ॥ ॥ग पहार षष्टमप्यस्तिः॥
॥॥अथ पंचकल्याणक विधि॥8॥ ॥ॐ॥ प्रथम शुनदिन शुन घमी गुरूकै पास । पंचकल्याणक तप ग्र हण करै । नपवास (बा) आंबिल एकासणा दिकको पञ्चख्खाण करै । तीन टंक देव बंदन करै । पमिकमणो करै । (जिस दिन) जो महाराजको कल्याणक होय । नसीको २००० गुणनो करै । और (पाश जिनेसर जग तिलोए०) इत्यादि पंच कल्याणक लावनित स्तवन पढे (वा) सुरें। जहां जगवंत के कल्याणक नूमि होय । (नहां) वझे महोबवसें संघ सहत यात्रा करने कों जावै । विधिसंयुक्त यात्रा करै । और सर्व नगवंतों के पंच कल्याणकको बव करै । (जो) शक्ति न हो (तो) शाश नके अधिपति श्रीमहाबीर स्वामी के षद कल्याणकका नबव जरूर करे ॥ ॥ अब २३ नगवंत की अपेक्षायें पांच, श्रीबीर प्रनूकीअपेवायें षट् कल्याणक संकेप नबव विधि लि० ॥ ॥१॥ चवन कल्याणक कों ( परमेष्टिनेनमः) कहियै ( इस दिन ) चवद स्वप्नादिक की पूजा क रायकै । चवन कल्याणकको नबव करै । हीरा चढावै ॥१॥ ॥