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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. मूलो जी। पर रमणीय पणो पणो टलें। सकल सिधि अनुकूलो जी॥१॥ प्रतिकूल आश्रव त्यागसंबर तत्व थिरता दममई । सुचि परम खंती मुनि दसे पद पंच संबर नपचई। सामायकादिक नेदधरमें यथाख्याते पूर्णता। अकशाय अकुलस अमल उज्वल कामकस्मल चूर्णिता ॥झी० ॥८॥ इति चारित्र पूजाः ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ( ढाल)॥ ॥ इहारोधन तप नमुं । वाह्य अभ्यन्तर दें जी । आतमसत्ता एकता । पर परणित न दें जी॥१॥नवेद कर्म अ नादि संतति जेह सिघपणो वरै । सुन्न जोग संग आहार टाली नाव अ क्रियता करै । अन्तर मुहूरत तत्व साधै सर्व संबरता करी । निज आत्म सत्ता प्रगट नावें करो तपगुण आदरी ॥९॥ * ॥ (ढाल ) ॥ * ॥ इम नवपद गुणमंमलं । चौनिक्षेप प्रमाणे जी । सातनये जे आदरै । सम्यग् झाने जाणो जी ॥१॥ (चाल) निरधार सेती गुणे गुणनो करै जे वहुमान ए। जसुकरण ईहा तत्व रमणे थाय निरमल ध्यान ए । इम सुघसत्ता न लो चेतन सकल सिघी अनुसरै । अक्ष्य अनन्त महन्त चिदघन परम आनंदता वरै ॥१०॥ (कलश) इम सयल सुखकर गुण पुरंदर सिघच क्र पदावली । सविलधि विजा सिधि मंदिर नविक पूजो मनरली । उव शाय वर श्री राजसारह ग्यान धरम सुराजता। गुरु दीपचंद सु चरण से वक देवचंद्र सुसोनिता ॥ ११ ॥ नक्षी० ॥ ॥ इति श्रीनवपद वासदेप पूजा संपूर्णम् ॥ ॥
॥2॥ ___॥ ॥ अथ कृषिमंमल पूजा लिख्यते ॥ * ॥
॥ ॥ (दोधक)॥ * ॥ प्रणमी श्रीपारस विमल । चरणकमल सु खदाय । शषिमंगल पूजन रचुं । वर विधियुत चितलाय ॥१॥ नंदीश्वर मंदरगिरै । शाश्वतजिन महाराज । अरचै अमविध पूजसें । जैसें सहु सु रराज ॥२॥ तिम चित जिनपति गुणधरी । श्रावक समकित धार । विर चै जिन चौवीसकी । अमविध पूजनदार ॥ ३ ॥ * ॥ (गाथा)॥१॥ सलिल ? सुचंदन २ कुसुमनरं । दीवगकरणंच ४ धूवदाणंच ५। बरस दत ६ नेविज्जयं ७ । सुत्रफल ८ पूजाय अहविहा ॥१॥ए अमविध