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नवपद बासकेप पूजा. संबर समाधी गत नपाधी मुविध तप गुण आगरा॥ ३॥ नक्षी ॥ ॥ इति आचार्य पूजा॥ ॥
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॥ ॥ ॥॥ (ढाल)॥खंतिजा मुत्तीजुआ । अव मद्दव जुत्ताजी । स चं सोय अकिंचणा। तव संयम गुण रत्ताजी ॥ १॥ (चाल) जे रम्या ब्रह्म सुगुप्ति गुप्ता मुमति समता श्रुतधरा । स्यामाद वादें तत्वसाधक आ त्मपर विनजन करा। नव जीरु साधन धीर सासन वहन धोरी मुनिवरा । सिंघान्त वायण दान समरथ नमो पाठक पदधरा॥ ४ ॥ ॥ १० ॥ इति उपाध्याय पद पूजा॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ (ढाल ) ॥ सकल विषय विषवारिनें। निकामी निस्संगीजी। अवपद ताप समावता । आतम साधन रंगी जी॥ १ ॥ (चाल) ॥ जे रम्या शुध स्वरूप रमणे देह निर्मम निर्मदा। कानसग्ग मुद्राधारि आसण ध्यान अभ्यासी सदा । तप तेज दीपै कर्म जीप नैव जगपै पर नणी । मुनि राज करुणा सिंधु त्रिनुवन बंधु प्रणमुं हितनणी॥५॥१०॥४॥ इति साधु पूजाः॥॥
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॥ ॥ *॥ (ढाल )॥ सम्यग् दर्शन गुण नमो । तत्व प्रतीत सरूपीजी। जसु निरधार सुनाव । चेतनगुण जे अरूपी जी ॥१॥ (चाल) जे अनूप श्रघा धर्म प्रगटै सयलपर ईहा टलै। निज शुध सत्ता नाव प्रगटे अनुभव करुणा कउले । बहुमान परणित वस्तु तत्वें अहव तमु कारण पणें। निज साध्य दृष्टे सरब करणी तत्वता संपतिगिणे ॥६॥१०॥ इति ६ दर्शनपद पूजाः॥ ॥
॥ ॥ (ढाल )॥ ॥ नव्य नमो गुण ज्ञाननें। स्वपर प्रकासक जावें जी। पर्याय धर्म अनन्तता। दानेद स्वनावे जी ॥१॥ (चाल) जे मो ह परणित सकल ग्यायक बोध नाव सनदणा । मति आदि पंचप्रकार निरमल सिघ साधन लंबना । स्यानादशंगी तत्वरंगी प्रथम नेद अनेदता। सविकल्पनें अविकल्प वस्तु सकल संशय छेदता॥७॥ी०॥॥ इति ज्ञान पूजाः॥॥
॥ ॥ (ढाल)॥ ॥ चारित्रगुण वलि वलि नमुं। तत्व रमण जसु