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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह
श्री सर्व साधुपद । स्यामवर्ण नगद प्रमुख लेवै । और पूर्वोक्त विधिः । (पूर्ण हो नैसें) की णमो लोए सब साहूणं ॥ इति पंचमी ५ ॥ ॥ (ब) दर्शनपद, स्वेत वर्ण । चावल प्रमुख पूर्वोक्त विधिसें । तँ की णमो दंसणस्स ॥ इति बढी पूजा विधि ॥ ६ ॥ ॥ (सातमें) श्री ज्ञान पद । स्वेत वर्ण । चावल प्रमुख पूर्वो । तँ की णमो नाणस्स ॥ ॥ इति सातमी० ॥ ७ ॥ * ॥ (आठ) चारित्रपद । स्वेतवर्ण । चावल प्रमुख पूर्वोक्त विधिः । की गमो चारित्तस्स ॥ इति आठमी पूजा विधि ॥ ८ ॥ ॥ (नवमें) तपपद । स्वेत वर्ण । चावल प्रमुख पूर्वोक्त विधसे । तँी मो तवस्स (कही ) कलश ढाले । अष्टद्रव्य चढावे । पीछे प्रष्ट प्रकारी पूजा करे | आरती करे ॥ ॥ इति नवपदजीकी पूजा विधि संपूर्णम् ॥
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॥ * ॥ अथ वासक्षेप पूजा लिख्यते ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ तीरथपति रिहानमूं । धरम धुरंधर धीरोजी । देशना मृत वरसता । निज बीरज बम वीरोजी ॥ १ ॥ ( चाल ) वर प्रखय निर्मल ज्ञान जासन सर्व नाव प्रकासता । निज शुद्ध श्रात्मनावै चरण थि रता वासता । जिन नाम कर्म प्रभाव अतिसय प्रातिहारज सोनता । ज गजंतु करुणावंत भगवंत भविक जननें थोता ॥ १ ॥ ॐ श्री परमा० ॥ वासं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति प्ररि० वासक्षेप पूजा ॥ ॥ ॥॥ (ढाल ) ॥ ॥ सकल कर्म मलय करी । पूरण शुद्ध स्वरूपो जी । व्यावाध प्रभुतामई । प्रतम संपति नूपोजी । ( चाल ) जे नू पतम सहज संपति शक्ति व्यक्तिपर्णे करी । स्वद्रव्य क्षेत्र स्वकाल नावें गुण अनंता आदरी । स्वस्वभाव गुण पर्याय परणित सिद्ध साधन परन णी । मुनिराज मानसर हँस सम वम नमो सिद्ध महागुणी ॥ २ ॥ * ॥ ॥ झी प० ॥ इति सिवपद पूजा ॥ * ॥
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॥ * ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ श्राचारज मुनिपति गणी । गुण बत्तीसे धामी. जी । चिदानन्द रस स्वादता । परनावै निक्कामो जी ॥ ३ ॥ निक्काम निर मल शुद्ध चिदघन साध्य निज निर धारथी । वरज्ञान दरसन चरण वीरज साधना व्यापारथी । जविजीव वोधक तत्वसोधक सयल गुण संपतिधरा ।