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रत्नसागर. हीने। जमणो हाथ नपधी ऊपर थापीने । पनी । इडं सबस्सवि राश्य 3 चिंतिय० ॥ कही। नमोथ्थुणं ( तथा ) करेमि नंते कही।इनामि गमि कान सग्गं० ॥ तस्सनत्तरी० कही ॥ एक लोगस्स (अथवा) चार नवकारनो का नस्सग्ग। पारीनें । प्रगट लोगस्स कही । सबलोए अरिहंत०। कही । एक लोगस्स (अथवा) चार नवकारनो कानसग्ग करवो । परी । पुख्खर वरदी०॥ सुअस्स० ॥वंदण०॥ कही।अताचारनी आठ गाथानो (अथवा) न आवमे तो । आठ नवकारनो कानस्सग्ग पारी । सिघाणं बुघाणं कही ने। त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ती पमिलेही । वांदणां वे देवा । (तिहांथी लेने) अनुठिो खामि । वांदणां वे दीजें (तिहां सुधी) देवसीनी रीतें जाणवू । पण (जे) ठेकाणे देवसिअं आवे (ते) ठेकाणे राश्यं कहेवू । पी आयरिश्र नवशाए० ॥ करेमि ते ॥ इडामि गमि० ॥ तस्स न तरी० कही ॥ तपचिंतामणि करतां न आवमे तो। चार लोगस्स (अथवा) शोल नवकारनो कानस्सग्ग करवो । ते पारी प्रगट लोगस कही । हा आवश्यकनी मुहपत्ती पमिलेही। वांदणां बे देवा । (पी) सकल तीर्थ वंदन करीने । यथाशक्तियें पच्चख्खाण करवू । परी इलाकारेण संदिसह नगवन् । सामायिक, चम्बीसत्थो, वंदन, पमिकमण, कानसग्ग, पञ्चख्खाण, क स्युं जी । एम आवश्यक संजारवा । पी पच्चख्खाण करयुं होय तो करघु ने जी (अने) धारयुं होय तो धारयुं ग्रेजी । एम कहे, । परी इडा मो अणुस िनमो खमासमणाणं० ॥ नमोर्हत् । कहीने । विशाल लोचन० ॥ नमोथ्थुणं० ॥अरिहंत चेझ्याणं० ॥ कही । एक नवकारनो कानसग्ग पारी । नमोऽर्हत् कही । कल्याणकंदं नी प्रथम थोय कहेवी पी लोगस्स । पुख्खरवरदी० ॥ सिघाणं बुघाणं० कही ॥ अनुक्रमें चार थोयो कहीए गए (तिहां सुधी) सर्व कहेवू । परी नमोथ्थुणं० कही। जग वान् आदि चारने । चार खमासमणेवांदवा। पी जमणो हाथ नपधी ऊपर थापी। अट्ठाइसु कहेवू । (पी) सीमंधर स्वामीनुं चैत्यवंदन, स्तवन जयवीय रायः॥कानसग्ग, थोय, पर्यंत कहीये । तिहां सुधी करवु ॥ परी खमासमण पूर्वक श्रीसिघाचलजीनुं चैत्यबंदन, स्तवन, जयवीयराय, कानसग्ग०॥