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पक्खी प्रतिक्रमण विधिः अने थोय कहीयें जियें । तिहां सुधी करवू । पठी सामायक पारवानी विधि नीरीते सामायक पारदुं ॥इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ पख्खि प्रतिक्रमण विधि ॥ || प्रथम दैवसिक प्रतिक्रमणमां वंदित्तु कही रहियें (तिहां सुधी) सर्व कहेवू । पण चैत्यवंदन, सकलार्हतनु, कहेवू । अनें थोयो, स्नातस्यानी कहेवी। पग खमासमण देईनें । इलाकारण संदिसह नगवान् । देवसिअं आ लोईअं पमिकता । इलाकारेण ॥पक्खि मुहपत्ति पमिलेहुँ । एम कही मुह पत्ती पमिलेहिये । पठी वांदणां बे दीजें । परी इलाकारे० संबुचा खामणे रणं अनुडिओहं अग्निंतर । पख्खिरं खामेळं इथं खामेमि पक्खिनं । पन्नरस दिवसाणं । पन्नरस राइनाणं । जंकिंचि अपत्तियं० कही । इलाकारेण सं० ॥ पक्खिनं आलोएमि इह आलोएमि । जो मे पक्खिो अईआरोको कही। इलाकारेण सं०॥पक्खी अतीचार आलोकं (एम कही) वृक्षप्रतीचार कहियें। पी एवंकारे श्रावकतणे धर्मे श्री समकित मूल बारव्रत। एकशो चो वीश अतीचार मांहें । जे कोई अतीचार । पद दिवस मांहे । सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुअो होय तेसवे हुँ मने वचने कायायें करी मिडामि उक्कम । सबस्सवि पख्खिा चिंतित्र। उन्नाासिय । चिडियइहाकारेण सदिसह नगवन् तस्स मिडामि मुक्कम ॥ इहकारि जगवन् पसायो करी प ख्खीय तप प्रसाद करोजी। एम नच्चार करी प्रावी रीतें कहिए ॥ चनथ्थेण एक नपवास । बे आंबिल त्रिण नीवि। चार एकासणा। आठ बेआसणा बे हजार सज्ञाय । यथाशक्ति तपकरी प्रवेश करयो होय (तो) पइछी कहीए करवो होय (तो) तहत्ति कहीयें। न करवो होय (तो) अण बोल्या रही में। पनी वांदणा (बे) दीजे । परी इलाका० ॥ पत्तेत्र खामणेणं अप्नति
ओहं अग्निंतर।पक्खिरं खामेकं । इडं खामेमि पक्खिअं। पन्नरस दिवसाणं । पन्नरस राईयाणं । जंकिंचि अपत्तियं०॥पी वांदणा (बे) दीजें । परी दे वसिअं आलोईअं पमिकता ।इबाका०॥ जगवन् पक्खियं पमिकमुं । स म्मं पमिकमामि । इदं ॥ एम कही । करेमिनंते सामाश्यं० कही ॥ शामि पमिकमिळं । जोमे पक्खिो कहेवो । पठी खमासमण देई । इलाकारेण