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रत्नसागर. संदि०॥ पक्खिसूत्रपहुँ। एम कही। त्रण नवंकार गणी । साधु न होय तो त्रण नवकार गणीने। श्रावक वंदित्तु कहे। (पी) सुअ देवयानी थुईकहेवी पी हेग बेसी । जमणो ढिंचण कलो राखी । एक नवकार गणी । करेमि जंते ॥छामि पडि० कही ॥ वंदित्तु कहे, ॥ परी करोमिनंते० इछामि गमि कानसग्गं । जोमे पक्खिओ ॥ तस्स उत्तरी०॥ अन्नथ्थ० ॥ कहीने बार १२ लोगस्सनोकानसग्ग करवो (ते लोगस्स) चंदेसुनिम्मलयरा, सूधी कहेवा ॥ (अथवा ) अमतालीश नवकारनो। काऊसग्ग करी पारखो ॥ पारीनें । प्रगट लोगस्स कही । मुहपत्ती पमिलहिनें। वांदणा बे दीजें । परी इलाका ॥ समाप्ति खामणेणं । अनुष्ोिहं अप्निंतर० ॥ पक्खिरं खामेऊ । इडं खामेमि पक्खिरं । पन्नरस दिवसाणं । पन्नरस राइ याणं । जिंकिंचि अपत्तियं० कही। परी खमासमण देईनें । इलाका० ॥ कहीं। पक्खि खामणा खामुं । एम कही खामणा चार खामवां ॥ परी देव सी प्रतिक्रमणामा वंदित्तु कह्या पग। बेवांदणां देईनें (तिहाथी) ते सामा यक पारीयें। तिहां सर्व सूधी देवसीनी पेठे जाणवू । पण । सुत्र देवयानी थुईने ठेकाणे, झानादिनी थोयो कहेवी । स्तवन अजित शांतिनुं कहेवू । सशायनें ठिकाणे नवसग्गहरं (तथा) संसारदावानी थुई। चार कहेवी ॥ अनें लघुशांतिने ठेकाणे मोहटी शांति कहेवी ॥ * ॥ इति पक्खी प्रति०॥
॥ ॥ अथ चौमासी प्रतिक्रमण विधि ॥ * ॥ - ये ऊपर कह्या मुजब पक्खिना विधि प्रमाणे करवु (पण ) एटलं विशेष । जे बार लोगस्सना कानसग्गने ठेकाणे ( वीश) लोगस्सनो कान्स
ग करवो (अने) पक्खिना आगारने ठिकाणे । चनमाशीना केहवा । यथा। तपने ठेकाणे । नणं बे नपवास । वार आंबिल । उ निवी । आठ एकाश णा शोल वेपासणा । चार हजार सशाय । ए रीते कहीए॥ इति ॥ ....
॥ॐ ॥अथ संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि ॥ * ॥ ॥ * ॥ एपणऊपर लख्या मुजब । पख्खिना विधि प्रमाणे करवू (पण) बार लोगस्सना कानसग्गने ठेकाणे । चालीश लोगस्स(अथवा)ए कशोनें शाठ नवकारनो कानसग्ग करवो (अने) तपनें ठेकाणे। अध्म अत्तं