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पञ्चक्खाण पारवा विधि । श्री महाबीर बंद. 1, १५९ (एटले) त्रण नपवास उ आंबिल। नवनीवि । बार एकासणां । चौवीस वेत्रा सणां अने उ हजार सशाय (ए रीते कहेवू ) अने पख्खिना आगारने ठेकाणे संवत्सरीना आगार कहेवा ॥ इति पंच प्रतिक्रमण विधिः संपूर्णः॥॥
॥॥अथ पडिलेहण करवानो विधि॥ ॥ ॥ ॥ नवकार पंचिंदिअ कही । इरीयावही पमिकमवी । थापना होय तो नवकार पंचिंदिअन कहे, । परी तस्सनत्तरी कही । एक लोगस्स (अथ वा) चार नवकारनो कान्सग्ग करी ! प्रगट लोगस्स कही। कने पगें बेसी मुहपत्ति, चरवलो, कटासणुं, नत्तरासण, धोतीनं, कंदोरो आदिनो पमिलेहण करवू । पी काजो काढी । जीव कलेवर सचित्त आदि जोवू । पगी काजो कहामनार थापनाजी सन्मुख कनो रही। इरिया वही पमिकमें । पी। का जो परउववा जग्या शोधी । त्रणवार अणुजाणह जस्सगो कही। काजो परवे। परीत्रण वार, वोसिरे, कहे ॥ इति पडिलेहण करवानो विधि ॥१॥
॥ * ॥अथ पच्चख्खाण पारवानो विधि ॥ ॥ ॥ ॥ प्रथम इरियावहियाए पमिकमीयें (पी) जगींचंतामणिर्नु चइत्यवंदन । जयवीयराय सुधी करवु (पी) मन्हजिणाणंनी सशाय कही मुहपत्ती पमिलेही । इहामि ० ॥ इलाका ० ॥ पञ्चख्खाण पारूं । यथाशक्ति इन्जामि ॥छाका०॥ पचख्खाण पारयुं । तहत्ति । एम कही। जमलो हाथ, कटासणां (अथवा ) चरवला ऊपर थापी एक नवकार गणी । पञ्चख्खाण करयुं होय ते कहेवू । ते लखीये गयें ॥ नग्गएसूरे नमुक्कार सहि। पोरिसिं साढपोरसिं । गठिसहियं मुंठिसहिअं पच्चख्खाण करयुं चनविहार । आंबिल, नीवि, एकासएं, बे आसणुं, करमु तीविहार । पच्चख्खाण कासि अं। पालिअं। सोहिअं । तीरिअं । किट्टियं । आराहिलं । जंच न आरा हि। तस्स मिठामि मुकम। एमकही। एक नवकार गणवो ॥इति ॥॥
॥अथ श्रीमहाबीरजिन बंद ॥ॐ॥ ॥ॐ ॥ सेवो वीरने चित्तमां नित्यधारो। अरिक्रोधनें मन्नथी दूरवारो। संतोष वृत्ती धरो चित्तमांहिं । राग द्वेषथी दूर थारो नबाहि ॥१॥ पड्या मोहना पासमां जेह प्राणी । शुध तत्त्वनी वात तेणें न जाणी। मनु जन्म