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रत्नसागर. . जन्म मरण सहु मुख दूरै करो दीनदयाल । गढ खरतर गुरु लक्ष्मीप्रधां न मोहन प्रतिपाल ॥ १२॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति त्रिनुवन मंमण सर्व जिन बिंब नमस्कार स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ वैराग्य सिज्जाय लि०॥ ॥ ॥ नूलो मन जमरा कांइनमें । जमियो दिवसने रात । माया रोवांध्यो प्राणीयो । जमीयो परमल जात ॥१॥०॥ कुंन काचो काया कारमी । जेहना करोरे जतन्न । विणसतां वार लागै नही । निरम ल राखोरे मन्न ॥२॥०॥ केहना गेरू केहना वाठरू । केहनां मा यनै बाप । प्राणी जास्ये एकलो । साथे पुण्यनें पाप ॥३॥०॥श्रा स्यातोमूंगर जेवमी । मरवो पगलां रै हेठ । धन संची संच कांई करो। करवो देवनी वेठ ॥ ४॥५०॥ लख पति उत्र पति सबगए । गएलाखोंके लाख । गरन करीरे गोखे वैसता। लए जलबल राख ॥५॥नू० ॥ जव सायर जल मुख नरयो। तिरवो जैरे जेह । विचमें बीह सबलो अवै । क रमें वायने मेह ॥६॥०॥ नलट नही मारग चालवो । जायवो पहिलै रे पार । आगलि नही हटवाणीयो । संबल लेज्योरे साथ ॥७॥५०॥ मूरख कहै धन माहरो । धन केहनो न थाय । वस्त्रविना जाय पोढवो । ल ख पति लाकम मांय ॥८॥०॥ महमंद कहै वस्तु वोरीय । जे कुरा वैरे साथ । अपणो लान नवारीयै । लेखो साहिब हाथ ॥ ९॥ ॥ इति ॥
॥अथ क्रोधनी सिज्जाय लि०॥ ॥ ॥ कडुवारे फल कोधना। ग्यानी इम बोले । रीसतणो रस जाणिइं। हलाहल तोले ॥क० ॥१॥ क्रोधे कोमि पूरखतणो । संजम फ. ल जाय । क्रोध सहित तप जे करै । ते तो लेखे न थाय ॥२॥क० ॥ साधु घणो तपियो हुं तो। धरतो मन बैराग। शिष्यना क्रोध थकी थयो। चंग कोसियो नाग ॥क० ॥३॥ आगि कठे जे घर थकी । ते पहलू घरवालें। जलनो जोग जो नवि मिलै । तो पासेनुं पर जालें।क० ॥४॥ क्रोध तणी गति एहवी । कहे केवल नांणी । हांणि करे जे हेतनी । जा