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जम्मासी तपींचतवन. . १२५ ते करि सके । नकरिसकुं । इम एक दिन हो । करि सके (न करिसकुं) इम एकेक दिन केगे करतां । नगुण तीस दिन कणा उम्मास हुवे । तिहां सूधी पूनिये । प। (पंचमासी) करि सके । न करिसकुं । एक दिन क एणी पंचमासी करि सकै (न करिसकुं)। इम एकेक दिन जो करतां नगुण तीस दिन कपी । पंचमासी लगें पूछियें । पर्छ। (चनमासी) एक दिन कणी । दोय दिन ऊणी । इमहीज त्रिमासी । उमासी । यावत् (एक मासकरि सके) । नकरि सकुँ । पठे। एक दिन कणो कियां । सो लह दिननो चौत्रीसम तप थाइ । ते करि सकै (न करिसकुं )। पछै । बेबे जात घटावतां पूनिय । (इम) वत्रीसम करि सकै (न करिसकुं)। (इम) त्रीसम । अठा वीसम । गवीसम । चौवीसम। बावीसम । बीसम । अगर सम । शोलसम । चौदसम । बारसम । दशम । अहम । बह। चनत्थ तप करि सके । (न करि सकुं)। (इम) आंबिल । निवी। एकासणो पुरिमट्ठ । पोरसी । नवकारसी । (तांई) जो पच्चक्खांण करवो हुवै । (सो) मनमें धारी । कानसग्ग पारै ॥ इति उम्मासी तप चिंतवन विधिः॥
॥ ॥ अथ प्रशस्तिः ॥ * ॥ ॥ ॥हा॥श्रीजिन चंद सुरिंद। नितुराजत गल राजान। वाचक मृत धर्म गणि । सीस मा कल्याण ॥१॥ सय अढार अमतीस मनि । जेशलमेरु मुथान । श्रावक विधि संग्रह कियो । मूल ग्रंथ अनुमान ॥२॥
॥ ॥ प्राचार ग्रंथनामः॥ * ॥ श्रीजिनप्रनसूरि कृत विधि प्रपा ॥१॥ खरतर मंमलाचार्य तरुण प्रन सूरि कृत षमावश्यक वालाबोधं ॥२॥ सामाचारी शतकं ॥३॥ वंदावृत्ति ॥४॥ प्रवचन सारोघारवृत्तिं ॥५॥ आचार दिनकरं ॥६॥ श्रीजिन पं तिसूरि सामाचारी पत्रं ॥७॥ शिवनिधानो पाध्याय कृत लघु विधि प्रपा दि॥ ८॥ ग्रंथाश्च विलोक्य अयं विधि प्रकाशो निर्मित ॥१॥ इति श्रावक विधि प्रकाशः परि पूर्णतामगात् ॥2॥