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लघु नवपद पूजा.
७२९ ॥ (ढाल) सकल विषय विष वारिने, आतमध्याने रातारे ॥ नपशम रसमां जीलता। निज गुण ज्ञाने भातारे ॥ १७॥ हित धरि मुनि पद बंदिये ( ए आंकणी) रतनत्रयी आराधतां । षट्काया प्रतिपाले रे॥ पचेद्री जीपे सदा। जिन मारग अजुवालेरे।।हि ॥ १८ ॥ गुण सत्तावी श अलंकरया। पंच महाव्रत धारीरे॥प्रादशविध तप आदरे । चिदानंद सुखकारीरे ॥ हि० ॥१९॥ नवविध ब्रह्मचरिज धरे। करम महा नट जी त्यारे।। एहवा मुनि ध्यावे सदा । ते नर जगत विदीतारे॥हि० ॥२०॥
॥ श्लोक ॥ व्याख्यादिकर्म कुर्वाणान् । शुन्नध्यानैक मानसान् ॥ उदपनगतान्नित्यं, साधून्वंदामि सुव्रतान् ॥१॥ वैराग्यमंतर्वचसि प्रशिई सत्यं तपोछादशधा शरीरे॥ येषामुदपत्र गतान् पवित्रान् । साधून् सदा तान परिपूजयामि ॥नशी सर्व साधुभ्योनमः॥॥ ॥॥
॥ अथ षष्टमदर्शन पदपूजा॥8॥
॥ दोहा । जिनवर भाषित शुधनय, तत्त्व तणी परतीत ॥ तेस म्यग्दर्शन सदा । प्रादरिये शुनरीत ॥१॥ ॥
जं दबनवाइ सु सदहाणं। तं देसणं सब गुणप्पहाणं । कुग्राहवाही नवयति जेण । जहा विसुद्धण रसायणेण ॥६॥॥
॥ ॥ ॥ बंद ॥ जिणुत्ततत्ते रुइ लक्खणस्स । णमो गमो निम्मल दसण रस ॥ मित्त नासाइ समुग्गमस्स। मूलस्स सचम्म महामस्स ॥१॥ विपरियासहो वासनारूप मिथ्या । टले जे अनादी अ जे कुपथ्या॥ जिनोक्ते हुवे सहजथी सुधध्यानं । कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं ॥ विना जेहथी झानमानरूपं । चरित्रं विचित्रं नवारण्य कूपं । प्रकृति सात नपश मदये तेह होवे । तिहां आपरूपं सदा आप जोवे ॥१॥8॥ ..08 ॥ (दाल)॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनी । सदहणा चित्त धरिये रें॥सात प्रकृतिनो क्य करी। दायिक समकित वरियेरे ॥ २१॥ दरशण पद नित बंदिये ( ए आंकणी) इण विण झान निःफल कां। चारित्र निःफल जा परे॥शिव सुख ए विण नां मीले, बहु संसारी थायरे॥ द०॥२॥सतसहि
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