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रत्नसागर. व करें। (एसेंही) रुघीवंत श्रावककों, धर्मका नद्योत के खातर, सर्वत्र गवंतके कल्याणकके दिन (जो) कल्याणक होय । नसीका महोत्सव करना चाहिये। असी शक्ति न होय ( तो) शाशनके अधिपति । देवा धिदेव (श्रीमहाबीर स्वामीके) च्यवन कल्याणकसे लेके । निर्वाण क ल्याणक पर्यन्त । (जिस दिन ) जो कल्याणक होय । नसीका महोडव पूजन करणा चहियै ( इसीसे) धर्मका नद्योत होय। श्रीसंघमें परम आ नंद होय ॥ * ॥ इति शासनाधिपति जन्मकल्याणक पर्वाधिकारः कथितः।।
॥॥चैत्री पूनम पर्वाधिकारः॥४॥॥
* ॥ चैत्री पूनम पर्वका अधिकार ( समाचारी शतकानुसारे ) लिखते है॥ * ॥ प्रथम चावलके पुंजरों से→जय पर्वतको स्थापन कर (तिसपर) पट्टा रखके । श्रीपुंमरीक गणधर (वा) श्रीषन देव स्वामी का बिंबस्थापन करै। अदत मोत्यां करके पर्वतकों वधावै । केशर चंदनसें पर्वतकों पूजे । सब श्रीसंघ इकठे होके । पर्वतके चौफेर तीन प्रदक्षणा देवै । पीछे पूजन सरू करै (यथा)॥ ॥ दश (१०)बीश (२०) तीश (३०) चत्ता (४०) पन्ना (५०) पुप्फदामेण लहई। चनत्थ उहम अहम दसम वालसम फलाइंच ॥ १॥ अब प्रथम (१०) प्रकारसे पूजनके अधिकार लिखते है ॥ ॥ एकाग्रचित्तसें । अष्टमंगलीक आगे रखके शुशोदकसें मूलप्रतिमा को न्हवण करावै । पीछे श्रीसंघ खमा होके। दश नमस्कार नच्चार पूर्वक । १० फूल ( तथा ) १० फूलमाला चढा के। प्रतिमाके १० तिलक करै। (यथाशक्ति) सुपारी । नालेर ( इत्या दि) सर्ब चीज नत्कृष्टसें दश २॥ जघन्य नालेर १ सुपारी १० और फ लफूल यथासंभव चढावै । धूप खेवै । कपूरकी आरती करै । पीछे सिक गिरि गुणगनित चैत्यबंदन करके । पांचशक स्तवे देव वांदै । १० खमा स मण देके (श्रीसिपत्र पुंमरीक गणधराय नमः) इस पदकों १० वेर नम स्कार करै । पीने (श्रीसेजेजय पुमरीक आराधनार्थ करेमि कानसग्गं)। अन्नत्थू ससि कहके । १० लोगस्सका कावसग्ग करै । ( इहां केई आ चार्य कहै ) बहुत उछव होय । वेला कम रहै । (तब ) एक लोगस्स