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अष्टापदन्ली०, श्रीबीरजन्म०, चैत्री पूनम विधि. ३४१ जीवोंके अनंत सुखप्राप्तिके कारण । चवदै पूर्वधारक श्री जद्रबाहु स्वामी जीने प्रशिध किया । ( इसीसें ) सर्व नव्य जीवोंके यह तप प्रमाण है । यह तपकों अपणी कुयुक्ति लगायके । जो पुरष खमन करते है । उस का, अनंत संसार । नगवानका बचनसें मालूम होता है ( शास्त्रोंमे लिखा है ) हे गोतम । अपणी कुटलताईसें ( जो ) सुत्रको एक हरफ नथा पण करेंगा ( सो ) अनंत संसार बढावेगा । ( सुत्र किसकुं कहते है ) सु त्तं गण हर रश्यं । तहेव पत्तेय बुधि रश्यंच । सुय केवलिणा रश्यं । अ निन्न दस पुविणा रश्यं ॥ १॥ (अर्थ) गणधरोंका रचाहुवा (तेसेंही) प्रत्तेक बुधिका रचा हुआ । श्रुतकेवली चवदै पुर्वधारी का रचा हुवा। संपूर्ण दश पूर्वधारीका रचा हुआ कों । जगवानने सुत्रकी संज्ञा कही है इसीसें प्रमाण है ॥ ॥ ... ॥ ॥ अथ अष्टापदन्लीकरण विधि ॥ ॥
॥ ॥ इसी चैत्रमासमें सुद (८) से लेके। पूर्णमासी तक । (केई जव्य जीव) अष्टापदजीकी नेती करते है ( जिसमें ) पमिकमणा । देववंदन । देवपूजा । इत्यादिक सर्ब विधि नवपदजीकी नेली तुल्य कर (इतना विशेष है ) श्रीअष्टापद तीर्थाय नमः । (इसी पदको) २००० गुणनो (वा) बीस जाप करै । अरिहंत पदके १२ गुणकों नमस्कार क रे। आंबिल (वा) एकासणेको पञ्चक्खाण करै । पीने पूर्णमाशीके दिन अष्टापदजी पर्वतकी स्थापना करके । विधिसंयुक्त ( २४ ) जगवंतकी पूजा करै (एसें ) चैत्र । आसोज । दो नेली करणेंसें । चार वर समें । एक नेनी करनेसें आठ वरसमें संपूर्ण होय । पीने नक्तिसंयुक्त क जमणो करै (साहमी वडल करै ( इत्यादि) विशेष विधि गुरुके मुखसें जानके करै )॥ ॥ इति द्वितीय अष्टापद नली पर्वाधिकारः कथितः ॥ ॥ ॥श्रीवीरजिन जन्म कल्याणक पवाधिकारः॥॥
॥ ॥ (अब तीसरो पर्व) चैत्र सुद १३ के दिन । श्रीमहावीरस्वा मी को जन्म कल्याण नयो है (इसीसें) सर्व ठिकाणें । धर्मरागी पुरुष गुरूके मुखसें समझके जलयात्रादिक संपूर्ण जन्मकल्याणकको महोब