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रत्नसागर.
॥॥सिद्धचक्र संखपग्द्यापन विधिः॥ ॥ ॥ * ॥ अब दशमें दिन गुरूके पास आके ननी तपकों पारें । तप पारण की विधि आगे लिखेंगे। (तथा) नद्यापनमें ग्यान नक्तिके कारण । ९पूग। ९ विटांगणा । ९.पुस्तक । ९ लेखण । ९ ठवणी । ९ फिल मिल । ९ रुमाल । ९ मोरा। ९ मिजासणा। ९ थापना। ९ चंद्रया। ९ पूठि
आ। ९ आरती। ९ कलश । ९ जापमाला। ९ मंदर। ९ प्रतिमा।९ तिलक । ९ मुगट । ( इत्यादिक) अनेक नव नव चीज वणावै । शक्ति न होय तो यथाशक्ती रोकनाणो चढावै । देव पदको देवपदमें देवै । गुरु पद को गुरु पदमें देवे । ग्यानपदको ग्यानखाते लगावे । इत्यादिक यथाजोग्य शुन क्षेत्रे खरच करै ॥ इति सिघचक्र संदेप नद्यापन विधिः॥ * ॥ ॥॥अथ द्वादशमाश सकल पर्वाधिकार लि० ॥ॐ॥
॥ॐ ॥ तत्र प्रथम चैत्रमाश चतुपर्वाधिकारः॥१॥ ॥ * ॥ चेत्रमास में । चैत्र सुद ७ सें लेके, चैत्र सुद १५ पर्यंत ९ दिन अति उत्तम है। ( सो ) अति नत्तमता का कारण कहते है । बार मासमें तीन अहाही महोचव आता हे । ( जिसमें ) । चैत्र आसोज का दोय अहाई महोठव सास्वता है । चैत्र सुद ८ (सें ) चैत्र सुद पूनम आसोज सुद ८ (से) आसोज सुद १५ ( यह ) दोनुं मासके आठ दिनोंमें । निश्चै सेती । च्यारुनिकाय के देवता इंद्र सब नेला होके । आ उमा नंदीसर दीप जावै ( पुन्याहं २ ) कहते थके । अष्ट द्रव्यसें पूजन करै । गीत गान नाटकादिकसें अनेक तरेकी भक्ति करै । पीछे नवमें दिन । अपणे २ जन्मकुं सफल मानते हुए । अपनें २ । देवलोक जावै । ( इसी माफक ) तीसरी अहाई आसाढ चौमासेकी ( १४ ) पीने । (४२) दिन जानेसें, संबहरी पर्व साचवणे को आठ दिन अहाई महोडव करें । अब यह नव दिनोंमें । चार पर्वसेवन करणे योग्य है ॥ * ॥ प्रथम नवपद जीकी नली। इसी नव दिनोंमें विधिसंयुक्त करे । (सो) विधिपूर्वे लिखी है । इससे इहां न लिखी। यह सिघ चक्रममल (और ) नवपदजी की नलीका अधिकार ( दशमा विद्या प्रवाद पूर्बसें ) नघरण करके । जव्य