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तपस्या ग्रहण की (तथा) संखेप ऊजमणा बिधि ३३९ ससि एणं ( इत्यादि कहै ) ( ५०) लोगस्सका कानसग्ग करिके । एक लोगस्स कहै । (पी) पूर्वोक्त करणी करै ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ तपस्या ग्रहण करणेकों गुरूकेपास जाणेकी
विधिः लिख्यते॥ ॥ * ॥ प्रथम शुन्न दिन, शुन्न घमी देखके अन्हा वस्त्र आनूषण पहरे । लिलामके तिलक करै । दोव । सरसुं। मस्तकमें धारण करै । हाथके मो ली बांधके । अदत । सुपारी। श्रीफल । नेवेद्य । यथाशक्ति रोकनाणो लेके । नवकार गुणतोथको । गुरूके पास जावै । प्रादशावर्त बांदणा कर के । ग्यान पूजा करै । पीछे बहुत प्रमोदवंत होके । गुरुके मुखसें ननो तप ग्रहण करै ( सो ) तपस्या ग्रहण करणेकी विधि आगै लिखेंगे ॥ इति तपस्याग्रहण करणकों पोशाल जाणेकी विधिः ॥ ॥
॥अथ संक्षेप जमणा विधिः लि०॥॥ * ॥ पंच वर्णके धान्यसें सिघचक्रकों मंमन करै । सिघचक्रजी के चौ तरफ तीन गढ चूमीके आकार वनावे । पहिलै गढमांहे । अष्टदल कमलके आकार नवपद स्थापन करै । पद २ के वर्ण गुण प्रमाणे । रत्नादिक चढावे । ( और ) पंचवर्णके फूल । पंचवर्णके धान्य । नवना खेरका गोटा रंगके । जिसपदका जैसा वर्ण होइ ( तैसे ही ) रंग का गोला चढावै । पंच वर्णी । नव धजा चढावै ॥ दूसरै वलयमें । सोले श्रीफल ( अथवा ) पूंगी फल चढावै । तीसरै वलयमें ( ४८ ) बुहारा चढावै ॥ नव निधानके ठिकाणे (९) नव बमा फल चढावै ॥ दश दिग्पा ल । नवग्रहकों । पक्वान्न प्रमुख चढावै ॥ इत्यादिक विधिसंयुक्त । सिध चक्र स्थापना। घर देहरासर आगे करै। ( और ) जिनमंदिर मांहे । बाह्य मंडपै ५ ॥ ७ हाथ प्रमाणे मंमल रचना करै । विस्तारसे सब बिधि गुरुके बचनसें करके । नवपदजीकी पूजा पढायके कलस ढालै । धवल मंगल गीतगान गावै । वाजिव बजावै। (इसीतरे ) महा महोठव । नदार चि त्तसें करै । मंगल दीप आरती प्रमुख करै । दूसरे दिन विसर्जन करै ॥ इति संखेप सिधचक्र मंगल विधिः॥॥