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रत्नसागर.
करसुं सफल अवताररे (नमो० ) ॥ १० ॥ रतनत्रयी जमती नली रे । देसुं ते घर बुधिरे । जव जव भ्रमण निवारसुंरे । लहिसुं तम सुधिरे ॥ ( न मो० ) ॥ ११ ॥ विध फरसा मन माहरो रे | मोहि रह्यो दिन रातरे । पुन्य प्रबल थी पामियो रे । जगिरी केरी जातरे (नमो० ) ॥१२॥ नाथ धूलेवा सु पसाय थी रे । कारज सगला सिधरे । कहै जिन हरष सूरी सदारे । होय जो मंगल वृधरे ( नमो० ) ॥ १३ ॥ इति सिद्धा० ॥
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॥ ॐ ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ (देशी पंथीडानी ) ॥ अंग नमावो मोनें प्रतिघणो । नेटवा बि मल गिरंदरे । (थीमा ) । नाभिराया कुल चंदलो । जिहां वसै मरुदेवी नन्द रे । (पंथीका ) । वहिलं बोलैरे पंथी झांरा वहिलं बोलैरे ॥ १ ॥ सेतुंजो
कितनी दूररे (पंथीका वहि० ) । पाली ताणो नगर सुहामणो । रूमी ललिता सरनी पालरे ( पंथीमा ) जिहां अंबारे वमला घणा । कुक रही चंपलानी कालरे ( पंथीका वहि० ) ॥ २ ॥ धन ते पंखी पारेवना । सेज वसिया सोररे ( पंथीका ) । ऊमाहो करीनें जे घर रहै । मांणस नहीं ते ढोर रे ! ( पंथीका वहितुं० ) ॥ ३ ॥ सेंत्रुज वाटेजी चालतां । कीणी जीणीकमै खेहरे । (पंथीका ) । मैला थायै संघना कापमा । निरमल थायै देहरे | ( पंथीका वहितुं० ) ॥ ४ ॥ ऊंचो देहरो आदि नाथ रो । आगल चौक विसाल रे ( पंथीका ) । जिहां मिलमिल घणा मानवी । गावै प्रगुण माजरे । ( पंथीका वहिर्तुं ० ) ॥ ५ ॥ घस केसर नरवाटका | पूजै जिनवर गरे । ( पंथीडा ) । फूलाहंदो सौ प्रजुसिर सेहरो । दि बलानी जोति गरे । ( पंथीडा व० ) ॥ ६ ॥ ए गिरवर दीगं माहरै । ऊपजै परमानन्दरे । ( पंथीमा ) मोनें नेटणरोजी कोम । प्रेम घणें जिनचंदरे । (पंथीका व० ) ॥ ७ ॥ इति सिधाचलजी स्तवनम् ॥ ४ ॥
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॥ * ॥ जात्रानिनाएं करियै विमल गिरि ( जात्रा ० ) ॥ पूरबनिनाएं वार सेलुंज गिरि । रुषनजिनंद समोसरियै ( विम० जा ० ) । कोडि सहस जव पातिक तूटै । सेज सामें नग नरियै । (
विमल ० जा ०
) १ ॥ चौ