________________
सिद्धगिरी स्तवन
३७३
'थ दोयम तपस्या । करि चढियै गिरवरियै । ( वि० जा० ) पुंरु रीक पद जपियै हरखें। अध्यवसाय शुभ धरियै ( वि० जा० ) ॥ २ ॥ पापी वी निजर न देखे । हिंसक पिण धरियै ( वि० जा ० ) । भूमि संथारीनें नारितो संग । दूर थकी पर हरियै ( वि०जा० ) ॥ ३ ॥ कल याहारीनें सचित्त परि हारी । गुरु साथै पद चरियै ( वि० जा ० ) पक्किम ा दोय विधसुं कीजै । पाप पकल विष हरियै ( वि० जा ० ) ॥ ४ ॥ कलि काले तीरथमोटो । प्रवहण सम जवदरियै ( वि० जा ० ) । उत्तम ए गिर वर सेवतां । पदम कहै नवतरियै । ( विम० जात्रा ० ) ॥ ५ ॥ 1111
॥ ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ आज बधाई म्हांरै रंग बधाई । मोतीयमे० । ए चाल ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ सिद्धगिरी नेटो जवि नावे | ज्युं सुखसंपति आनंद थावे । सि० ॥ ए गिरवरकै नेटणसेती । पूरब संचित अघ सहु जावै ॥ सि० ॥ ॥ १ ॥ राय रखे रिषन जिनेसर। पूरब निनांएं आया स्वभावै ॥ सि० ॥ पुंर गिरकी महमा जिननें । भरतादिक सब जनकुं सुणावै ॥ सि० ॥ २ ॥ सासतो तीरथ तीन जुवनमें। शिवपुरि पाज प्रत्यक्ष कहावै ॥ सिं० ॥ को कि अनंत साधू इस ऊपर । मुक्तिगये इस गिरके प्रभावै ॥ सि० ॥ ३ ॥ एकवार गिरकुं नेटसें । सहस कोरुना पातक जावै ॥ सि० ॥ नानिरा
मरुदेवी नन्दन । आदिजिनंद नेट्यां सुखपावै ॥ सि० ॥ ४ ॥ अनु तबिंब अनोपमसोत्रित । चौमुख जिनवर प्रति मननावै ॥ सि० | देशदे शांतरसें बहु नरगण | आय नलीविध पूज रचावै ॥ सि० ॥ ५ ॥ कपूर क स्तूरी केसर घोली । मनसुध प्रनुके चरण चढावै ॥ सि० ॥ आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो । मनमें हरष आनन्द रावै ॥ सि० ॥ ६ ॥ आज रखी कंचनमइ गो । विमलाचल जेट्या सुनावै ॥ सि० ॥ मुर्शिदाबाद प्र जीमगंज में । गोत्र दूधेड्या प्रगट कहावै ॥ सि० ॥ ७ ॥ मोहतिमर अघ दूर करणकों | बुध सिंह यात्राकरी सुनावै ॥ सि० ॥ गगन जोग ग्रह इंदु संबवर । चैत्रनुज्वल तेरस मन जावै ॥ सि० ॥ ८ ॥ प्राग्रह श्रीम