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रत्नसागर. जयराजकुं। साथ जलीबिध यात्रा करावै ॥ सि० ॥ संघ साथ श्री लक्ष्मी प्रधानना। शिष्य मोहन प्रजुना गुणगावै ॥ सि ॥९॥ इति ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ जिनबिंब संख्यागर्षित सेव॒जरास लि०॥॥
॥ * ॥ दूहा ॥ आदिजिनंद दिनंदसम । ज्योति रूप जगतेय । आ तम गुण परकास कर । नवियणकुं सुख देय ॥ १ ॥ वाग्देवी प्रणमी करी। सद्गुरु सीस नमाय । सिघ क्षेत्रका गुण कहुं । सुमताने सुपसाय ॥ २॥ सुमता वचने चालतां । सदा सुरंगी देह । सुरपति नरपति सहुनमें। पामेंशिवसुख तेह ॥३॥ सुमता जिम चेतन जणी । समभावे चित आय । प्रथम बात एही कहुं । सुणो नवी चितलाय ॥ ४ ॥ * ॥ ढाल १ मारू जीकी ॥ * ॥ सुमता कहे चेतन नणी। साहिबजी। गेमो मिथ्या जालहो। इक चित्ते एगिरि सेवियेसा ॥ ज्यो निज गुण नी चाहहो॥इक०॥१॥ काल अनादीसें रह्यो। सा० ॥ कुमति कथन बस होयहो । नवमांहे जमतां मुखसह्या ॥ सा० ॥२॥ जन्म मरणकरि नव नवा ॥ सा० ॥ नटज्युं वेश व नां वहो । चनुगतिमें नाटक तुम कियो ॥ सा० ॥ ३ ॥ नरक निगोदमें तुम रह्या ॥ सा ॥काण नहिं पाम्यो सुख हो । किम जूलो मुख देखी जिसा ॥ सा०॥४॥ देव मनुष्य अवतार में । सा० ॥ मोह विटंबणाः ख हो । चित्तधरने पुजन गंमिये । सा०॥५॥ बल अपणो फोरयां बि नां । सा॥ऊन नपमे पायहो । जशलीजे पुऊन कय करी ॥ सा० ।। ६॥ मुमकुंकदेय न संनरी ॥ सा० ॥ तोपिण अवसर देखहो। तुमागे बात सहू कही ॥ सा ॥७॥ नत्तम नर जिणनें कह्यो ॥ सा ॥ होय गुण अवगुण जांणहो। बलि जांणे मित्र कुमित्रनें ॥ सा० ॥ ८ ॥ मुझसे प्रेम धरी करी ॥ सा ॥ कीजे वचन प्रमाण हो । जिन मारग नत्तम आदरौ ॥ सा ॥ ९॥ चारित्र धर्मनी आगन्या ॥ सा॥ धारो शिर पर आजहो । जिम पामो रंग बधामणा ॥ सा० ॥ १० ॥ सुध सरधा जलकुं ग्रही॥सा॥बोवो समकित बीज हो । नवपद्धव धर्म तरू हुये ॥ सा ॥ ११॥ नत्तम नर सुरपति पणो ॥ सा ॥ पुष्प सुगंधी जाण हो । फलइणका शिव सुख पांमस्यो । सा ॥ १२ ॥ उत्तम ग्यांन प्रकाशसें ॥