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रत्नसागर. अं० ॥ एम विचारी कृष्णजी॥ह० ॥ निजअंतेनर समझाय ॥ अं० ॥३॥ नेम विवाह मनायवा ।। ह० ॥ सज थान सगली नार ॥ अं०॥ रूपचंद रंगें मिल्या॥ह ॥ताहरु अतुली बलअरीहंत ॥ अंत०॥४॥॥
॥ ॥ ढाल त्रीजी॥॥ ॥ ॥ राधाजी ने रुक्मणी । मोरा गिरधारी। सत्यनामा जांबुवती नार। मुकुटपर हुं वारी । चंद्रावती शिणगारीयें ॥ मोरा० ॥ गोपी मली बत्तीश हजार ॥ मुकुट०॥१॥ विवाह मानो नेमजी । देवर मोरा जी। मने करवाना बहु कोम । ए गुण तोराजी। नारी विनानुं आंगणुं ॥ देवर ॥जेम अलूणो धान ।। ए गुण ॥२॥ नारी जो घरमां वदे ॥ देवर० ॥ तो पामें प्राहुणा मान ॥ ए गुण ॥ नारी विना नर हाली जिसा ॥ देवर वली वांढा कहशे लोक ॥ ए गुण ॥ ३ ॥ नोकरवाद न कीजीयें ॥ देव०॥ ॥ तमें मकरो ताणो ताण ॥ ए गुण ॥ रूपचंद रंगें मल्या ॥ देवर० ॥ हवे नत्तर आपे नेम ॥ ए०॥४॥॥
_॥ ढाल चोथी॥॥ ॥2॥ नेम कहे तमे सांगलो॥ मोरी नानी जी । ए किशो काम विकार । में गत पामी जी। नारी मोहें जे पड्या ॥ मोरी०॥ ते रमवमिया गति चार ॥ में० ॥१॥ रावण सरिखो एलव्यो। मोरी० ॥ जे लइ गयो शीता नार ॥ में०॥ नारी विषनी कुंपली॥ मो० ॥ मायानी मोहन वेल ॥ में ॥२॥ उपन्न कोमि जादव मिल्या ॥ मोरी०॥इम कहे ते वारो वार ॥में०॥ रूपचंद रंगें मल्या॥ मोरी०॥ नेम नहिं परणे निरधार ॥ में ॥३॥
॥ ढाल पांचमी॥ॐ॥ ॥ * ॥ अवला बोल न बोलीयें । वर राजाजी । तमें परणो नेम कु मार । मकरो दिवाजाजी । एकवीश तीर्थकर थया॥ वर०॥ते तो सर्वे परण्या नार ॥ मकरो ॥१॥ नारी खाण रतन तणी ॥ वर०॥ तेनुं मू ख्य केणे नवि थाय ॥ मकरो० ॥ नारीमाहेथी नर नीपना ॥वर० ॥ तुम सरिखा श्रीनगवान । मकरो० ॥२॥ नेम न बोले मुखथकी। वर०॥ मां मयो विवाह मंमाण ॥ मकरो० ॥ नग्रसेन घर बेटगी । वर० ॥ ते