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इग्यारै अंग सिशायां विह गणि पिटक तणी संख्या कही हो ॥त०॥ सासता अरथ अनंतकि जै एहना सही होलाल ॥३०॥३॥ सुय खंध अध्ययन नदेशादिके न ला हो लाल ॥ न०॥ संख्यायें एक एक प्रत्येकै गुणनिला हो० ॥ प्रत्ये० ॥ पद एक लाख चौमाल सहस ते उत्तरा हो० ॥ स०॥ पदनें अग्र नदन सं छाता अकरा हो ॥२०॥४॥नाष्य चूर्णि नियुक्ति करी सोहै सदा हो करी०॥ सुणतां नेद गंभीर त्रिपत न होय कदा हो० ॥ त्रिप० ॥ जेहनमा अंगकि अन्तरगतिहसी हो० ॥ अन्त० ॥ जनवरसं ते जोर कुणन हुवै खुसी हो० ॥ कुण० ॥५॥ जाग्यो धरम सनेह जिणंदमुं माहरो हो । जिणं०॥ तजिया शास्त्र मिथ्यात सुत्र जाण्यो खरो हो० ॥ सु० ॥ जिम मा लती लहीनॅग करीने नविरहै हो०॥ करी० ॥ ईश्वर शिर मुरगंग तजी परि नवि वहै हो॥तजी०॥६॥ एप्रवचन निग्रंथ तणो जुगतै वमो हो । तणो० ॥साकर सेलमी द्राष थकी पिण मीठमो हो ॥ थकी० ॥ स्युं कही यै बहुवात विनयचंद्र इम कहै हो० ॥ वि०॥ एहना सुणने नाव श्रोता अति गहगहै हो०॥श्रोता०॥७॥इति श्रीसमवायांग मूत्रसिशाय सं० ॥४॥
॥॥अथ (५)नगवती सूत्र सिशाय लि०॥४॥
॥ ॥ ( ढाल पंथीमानी)। पंचम अंगे जगवती जाणीयैरे । जिहां जि नवरना वचन अथाहरे । हिमवंत परबत सेती नीकल्यारे। मानु परतिख गंगप्रवाहरे (पं०)॥१॥ सूरपन्नत्ती नामें परगमीरे । जेहनी छै नद्दाम न्यांगरे । सूत्र तणी रचना दरीया जिसीरे । मांहिला अरथ ते सजन तरं गरे ( पं० )॥२॥ इहां तो सुयखंध एक अति जलोरे । एक सो एक अध्ययन नदाररे। दश हजार नदेशा जेहनारे। जिहां किण प्रष्ण उत्तीश हजाररे ( पं० )॥३॥ पद तो दोयलाख अरथे नस्यारे। ऊपरि सहस अठ्यासी जाणरे । लोकालोक स्वरूपनी वर्णनारे। बिवाह पन्नत्ती अधिक प्रमाणरे ( पं० ) ॥४॥ करियै पूजा अनें परनावनारे । धरियै सदगुरु ऊपररागरे । सुणिय सूत्र नगवती रागसुंरे। तो होय नव सागरनो त्यागरे (पं०)॥५॥गोतम नामें द्रव्य चढाइयैरे। सम्यक ज्ञान उदय होय जेमरे। कीज साधु तथा साहमी तणीरे। नगति युगति मन आणो प्रेमरे ( पं० )॥६॥
* ॥ ( ढाल पंथानात परबत सेती
मारे । जेहनी उनका