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... रत्नसागर...... इण विधिसुं एह सूत्र आराधतांरे। इण नव सी वंचित काजरे । परजव विनय चंद्र कहे तेलहैरे। मोहन मुगति पुरीनो राजरे ( पंच० ) ॥ ७ ॥ इति श्रीनगवती सूत्र सिशाय सं० ॥५॥॥
॥ ॥ ॥ ॥ (६)शातासूत्र सिशाय लि० ॥ * ॥ ॥ॐ॥(ढाल ) कितलख लागा राजाजीरै मालियै । ( एदेशी )। हो अंग ते ज्ञाता सूत्र वखाणिये जी । जेहना चै अरथ अधिक नईम हो (झांरा सुणजो धरिनेह सिधांतनी वातमीजी)। श्रवणे सुणतां गाढो रस ऊ पजै जी। मधुर ता तर्जित जिम मधु खंम हो (ह्मां० ) ॥१॥ जंबुद्दीव पन्नत्ती नपांग जेहनो जी। इण मांह जिन पूजानी बिधि जोरहो (ह्मां०) अर्चिक सुणि परम शांतिरस अनुन्नवै जी । चर्चिक सुणि करै सम सोर हो (झां० ) ॥२॥ नगर न्धान चैत्य वनखंग सोहामणो जी। समवस रण राजाना मातने तातहो ( मां०) धरमाचारज धर्म कथा तिहां दा खवी जी। इहलोक परलोक शधि विशेष सुहात हो (ह्मां० )॥३॥ नो ग परित्याग प्रवज्या पर्षदाजी। सूत्र परिग्रह वारू तप उपधान हो (मां० ) संलेहण पञ्चखाण पादपोप गमनताजी । स्वर्ग गमन शुनकुल नतपत्ति हो (मां)॥४॥ बोधिलान वलितंतते अंतकृया कहीजी। धर्मकथाना दोय सुअखंध हो (ह्मां० ) । पहिलाना नगणीश अध्ययन ते आज जी। वीजाना दशवर्ग महा अनुबंध हो (झां ० )॥५॥ ऊंठ कोमि तिहां स बल कथानक गाषिया जी । भाष्यावलि न्गणीस देश हो (मां॰) । संख्याता हझार जला पद एहना जी। एह थकी जायै कुमति कलेश हो (झां० )॥६॥ विनय करै जे गुरुनो बहु परै जी । तेहनें श्रुत सुणतां बहु फल होय हो (ह्मां० )। ते रसिया मन बसिया विनय चंद्रनें जी। सो माह मिले जोयां एक कै दोय हो (ह्मां० )॥७॥ ॥' इति श्री ज्ञाता धर्म कथाङ्ग सिशायः ॥६॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ (७) उपाशकदशा सूत्रसिशाय लि० ॥ ॥
॥ ॥ (ढाल बिगियानी)। हिवै सातमो अंग ते सांनलो। नपाशग दशानांमें चंगरे । श्रमणो पाशकनी वर्णना । जसु चंदपन्नत्ती नपांगरे॥१॥