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इग्यारै अंग सिशायां मन लागो मोरो सुत्रथी । एतो जव वैराग तरंगरे। रसराता झाता गुण लहै। परमारथ सुविहित संगरे (म०)॥ २॥ इण अंगै सुयखंध एक अध्ययन न्देश विचाररे। दशरसंख्यायें दाखव्या। पद पिणसंख्यात हजाररे (म०)॥३ आणंदादिक श्रावक तणो। सुणतां अधिकार रसाल रे। रस लागै जागै मोहनी । श्रोता जननें ततकालरे (म०)॥४॥ श्रोता
आगलतो वाचतां। गीतारथ पामें रीफरे । जे अर्थ दग्ध समझ नहीं । ते हमुं. तो करवी धीज रे। (म०)॥५॥ दश श्रावकतो इहां जाषिया । पण सूत्र नण्यो नहीं कोयरे । ते माटै शुच श्रावक नणी । एक अरथ नी धारणा होय रे ( म०)॥ ६ ॥ साचो होय ते प्ररूपीयै । निस्संकपणे मुजगीसरे । कवि विनय चंद्र कहै स्युंथयो । जो कुमती करस्यै रीसरे (म०)॥७॥इति श्रीनपाशक दशांग सिशायः॥७॥॥
॥ * ॥(८) अंतगमदशांग सिशाय लि०॥॥ ॥ * ॥ (ढाल) बीर वखाणी राणी चेलणाजी। इस चालमें ॥१॥ आठमो अंग अंतगम दशाजी । मुणी करो कान पवित्र । अंतगम केवली जे थया जी । तेहनारे इहां आठ चरित्र ॥ १॥ कर्म कठिन दल चूरता जी। पूरता जगतनी आस । जिनवर देव इहां जासताजी । सा सता अर्थ सुविलास ( आ० )॥२॥ सकल निक्षेप नय जंग थीजी । अंग ना नाव अनंग । सहिज सुखरंगनी तलिगकाजी । कल्पिका जासु नवांग (आ०)॥ ३॥ एक सुय खंध इण अंगनोजी। वर्ग चै आठ अनिराम
आठ नद्देशा 3 वलीजी। संख्याता सहस पद गम ॥ (आ..) ॥ ४ ॥श्रा उमा अंगना पाठमें जी। एहवो अरे मीगस । सरस अनुन्नव रस ऊपजै जी। संपजै पुण्यनीरास (आ०) ॥५॥ विषय लंपट नर जे हुवै जी। निरविषयी सुण्या थाय । जिम महाविष विषधर तणो जी। नागमंत्रे सुण्या जाय (आ०)॥६॥अमृत वचन मुख वरसती जी। सरस्वती करोरे पसा य। जिम विनय चंद्र इण सूत्रनाजी । तुरतलहै अभिप्राय (आ.) ॥७॥ इति श्रीअंतगम दशांग सिशायः॥८॥॥ ॥ ॥ ॥