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रत्नसागर. ॥ ॥ अथ (३) गणांग सूत्र सिशाय लि०॥ॐ॥ ॥ ॥ (ढाल) आठ टकै कंकणो लीयोरी (ए चाल) त्रीजो अंग जलो कह्योरे। (जिनजी) नामें श्रीगणांग । (मोरो मन मगन थयो)। हारे देखी २ जाव । हारे जीवाजीव स्वनाव (मो०) सबल जगत करी गजतोरे । जि० । जीवानिगम नपांग (मो०)॥१॥ एह अंग मुझ मन व स्योरे । जि० ॥ जिम कोकिल दलअंब (मो०) गुहिर जाव कर जाग तोरे ॥ जि०॥आजतो एह आलंब (मो० ॥२॥ कूट शेल सिखरी सिलारे। जि०॥ काननमें वलिकुंम ( मो०) गह्वर आगर द्रह नदीरे॥ जि०॥जेहमें अरे नदंम (मो०)॥३॥ दश ठगणा अतिदीपतारे॥ जि०॥गुण पर्याय प्र योग ॥ मो० ॥ परित्त जेहनी वाचनारे ॥ जि० ॥ संख्याता अनु योग (मो०)॥४॥ वेष्ट शिलोक निजुत्तमुंरे ॥ जि० ॥ संगहणी पनि चि त्त (मो०) ए सहु संख्याता जिहांरे ॥ जि० ॥ सुणतां नलसै चित्त (मो०)॥५॥ सुयखंध इक राजतोरे । जि० । दश अध्ययन नदार ( मो०) नदेशादिक वीशबैरे। (जि० ) पद बहुत्तर हजार (मो०)॥६॥ रागी जिन शासन तणोरे। जि०॥ सुणे सिघांत वषांण ( मो०)। विनय चंद्र कहै ते हुवैरे॥ जि०॥ परमारथरा जाण (मो०)॥७॥ ॥ ॥ इति श्रीगणांग सूत्र सिझायः॥8॥ ॥ ॥ अथ (४) समवायांग सूत्र सिशाय लि०॥8॥
॥ ॥ ( ढाल ) थारा महिलां ऊपर मेह वोके वीजली. (ए चाल) ॥ ॥ चौथो समवायांग सुणो श्रोता गुणी हो लाल ॥ सुणो० ॥ पन्नवणा नपांग करी सोनावणी हो लाल । करी सो०॥ अरध मागधी भाषा साखा सुरतणी हो लाल ॥ साखासु०॥समकित नाव कुसुम परमल व्यापी घणो हो लाल ॥ पर० ॥१॥ जीव अजीवनें जीवाजीव समास थी हो लाल ॥ जीव०॥लहीयै एहथी नाव विरोध कांइ नथी हो लाल ॥ वि० ॥ नांगा तीन स्वसमयादिकना जाणीयै हो लाल ॥ यादि० ॥ लोक अलोकनें लो कालोक वखाणीय होगालो०॥२॥ एक थकी नेसत समवाय प्ररूपणा होला ल ॥ सम०॥कोमा कोम प्रमाणक जीव निरूपणा हो० ॥ जी० ॥ बारस