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॥ श्रीः ॥
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* ॥ * ॥ वडो नवकार ॥ ॥
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॥ ॐ ॥ किंकप्पत्तरु रे प्रयाण चिंतन मणनिंतरि । किंचिंतामणि का मधेनु हौबहुपरि । चित्रावेली काजकिसे देतंतर जंथन । रयणरासि कारण किस सायरनलंघन । चवदह पूरबसार युगे लौ ए नवकार । सय 'काज महियलसरै उत्तरतरै संसार । केवलिनासिय रीतिजिके नवकार आरा है | जोगविसुक्ख अनंत अंत परमप्पयसा है । इणकारों सुररिधि पुत्त सुहविलसै बहुपरि । इणजाणें मुरलोक इंदपद पार्मेसुन्दरि । एहमंत्र सासतो जगे अचिंत चिंतामणिएह । समरण पापसवेटलै रिद्धिसिद्धि नि यगेह ॥ २ ॥ नियसिर ऊपर जांण मझचिंतवै कमलनर । कंचनमय उदलसहित तिहांमांहिंकनकवर । तिहांबैठा अरिहंतदेव पनमासण फिट कमणि । सेयवत्थ पहरेवि पढमपय चिंतन नियमणि । निवारिय चनगइग मण पामिय सासय सुक्ख । अरिहंताणई तुमलहो जिमप्रजरामर मुक्ख ॥ ३ ॥ पनरनेय तिहां सिद्ध बीयपद जे प्राराहै। रातैविद्रुमत वानि यसोहग साहइ । रातीधोवत पहिर जपइ सिहं पुबई दिसि । सयल लोय तिहां नरहोइ ततखिणसईबसि । मूलमंत्र वसीकरण अवरसहु जगधं ध । मणिमूली प्रोषधकरबुद्धिहीण जाचंथ ॥ ४ ॥ दक्षिणदिसपंखडी जपै णमो आयरियाणं । सोवनवाह सीससहित नवएसहनाणं । रिद्धि सिद्धि कारणें लाभ ऊपर जे ध्यावइ । पहिरवि पीलावत्थतेह मनवंबियपावइ । इ जानवनिधिहुवै रोगकदेनविहोइ । गजरथ हयवरपालखी । चामर
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