SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ रत्नसागर. सिरजोइ ॥ ५ ॥ नीलवण नवजाय सीस पाढंता पछिम | राहि अंग धारं मणोरम । पविमदिश पंखडी कमल ऊपर सुहऊाणं । जोवो परमाणंद देवराय तासु विमाणं । गुरु लघु जे लक्खै विदुर तिहां नरबहुफल हो । जावविहणा जे जपै तिहां फलसिद्ध न कोइ ॥ ६ ॥ सर्वसाधु उत्तरविभाग सांमजा बइछा । जिस धर्मलोय पयासयत चारित गुणा | मकाएहिं जपै जे एकै काणै । पंचवण तिहां नाणका एण गुण एहपमाणें । अनंतचोवीसी जगहुईए । होसी अवर अनंत । आ दिकोई जाणें नही इण नवकारह मँत ॥ ७ ॥ एसो पंच नमोकारो । पद दिशिगनेहिं । सब पावप्पणासणी पदजप नेरेहिं । वायवदिस जाएह मं गलाणचसबेसिं । पढमंहव मंगलं ईसाणपएसिं । चिहुंदिस चिह्नं विदिसे मिलिय दल कमल वेइ । जो गुरु लघु जाणी जपै सो घणपापखवेड ॥ ८ ॥ इणप्रभावधरणिंदहुन पायाजहसामी । समली कुमर उप्पल जिल्ल सुरलोयहगामी । संबल कंवल बेबलध पहुता देवांकप्पे । सूलीदीधो चोर देव थयोनवकारह जप्पें । शिवकुमार मनवंचिकरि । जोगीलीयो मसांण । सोनापुरसो सीधलो । इणनवकार प्रमाण ॥ ९ ॥ कबैठो चोर एक आकासैगामी । हिफिट्टी हुई फूलमाल नवकारह नामी । वाबरुमा चारं बाल जलनदीप्रवाहै । वींध्यो कंटहि नयर मंत जपियो मनमां है । चिंत्या का सवे सरे । ईरति परति विमास । पालितसूरि तणी परे । विद्या विकास ॥ १० ॥ चोरधाड संकट टलै राजावसिहोवै । तित्थंकर सो होइ लाखगुणविधि जोवै । साइण माइण नूत प्रेत वेताल न पुहवड़ । धि व्याधि ग्रहणी पीड ते किमहि न होवइ । कुछ जलोदर रोग सबे नास एहमंत । मयणासुंदरितणीपरै नवपय जाण करत ॥ ११ ॥ एक जीह इनमंत्रणा गुण किता बखाणुं । नाणही बनमत्थएह गुण पारन जाएं । जिमसेजै तित्थरान महिमा नदयवंतौ । तिममंतह बुरि एह मंत्रराजा जैवंतौ । तित्थंकरगणहरपणिय चन्दै पूवसार । इणगुण अंत कोलह गुणगुरुन नवकार ॥ १२ ॥ प्रडसंपय नवपय सहित इगसठ लघु प्रहर । गुरुमकर सत्तेव एहजाणो परमादर । गुरुजिणवतहसूरिन
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy