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नवपद बमी पूजा. . ॥ॐ॥अथ७ में श्री ज्ञानपद पूजा॥ ॥ ___॥ ॥ (दूहा) ॥ * ॥ सप्तम पद श्री ज्ञाननो । सिघ चक्र तप मां हि । आराधी जै सुनमनें । दिन २ अधिक नबाह ॥१॥ (काव्य) अ नाण सम्मोह तमो हरस्स । नमो २ नाण दिवायरस्स । पंचप्पयारस्सु वगारगस्स । सत्ताण सवत्थ पयासगस्स ॥ होई जेहथी ज्ञानशुध प्र बोधै । यथा वर्ण नासै विचित्रा विबोधै । तिणे जाणीई वस्तु षद्रव्य ना वा। न होवै विकला निजेठा स्वनावा ॥२९॥ होइं पंचमत्यादि सुग्यान
दै । गुरुपासथी योग्यता तेह वेदई । वली झेय हेया नपादेय रूपै । लहै चित्तमां जेमध्यान प्रदीपै ॥६०॥ ॥ (ढाल ) ॥नव्य नमो गुण झाननें । स्वपर प्रकाशक नावे जी । परयाय धरम अनंतता । नेदा नेद वनावै जी ॥ (चाल) ॥ जे मोख्य परणति सकल ज्ञायक बोध वास विलासता । मति आदि पंच प्रकार निरमल सिघ साधन लंगना । स्या माद शंगी तत्वरंगी प्रथम नेद अनेदता । सविकल्पनें अविकल्प वस्तु स कल संसय बेदता ॥६१॥ ॥ (ढाल ) ॥ ॥ जद अन्नदन जे वि ण लहीयै । पेय अपेय विचार । कृत्य अकृत्य न जे विण लहीयै । ज्ञानते सकल आधाररे ॥ (न०) ॥६२॥ प्रथम झाननें पने अहिंसा । श्रीसि घाते जाप्यु । छाननें बंदो शान मनिंदो । झानीय शिवसुख चाख्युं रे॥ (न० सि०) ॥६३॥ सकल क्रियानुं मूलते अंधा । तेहy मूलजे कही इं। तेह झान नित नित वंदीजै । ते विण कहो किम रहीईरे॥ (जो ६४)॥ पांच शान मांहें जेह सदागम । स्वपर प्रकाशक तेह । दीपकपरै त्रिनुवन नपगारी । वलि जिम रवि शशि मेहरे ॥ (न० सि० ) ॥६५॥ लोक करध अध तिर्यग् जोतिष । वैमानिकनें सिधि । लोक अलोक प्र गट सवि जेहथी । तेझाने मुफ शुद्धीरे ॥ (न सि०) ॥६६॥ १ ॥ ( ढाल )॥ ॥ झानावर्णी जे कर्म हैं। क्य नपशम तसु थायै रे। तो होइ ए हीज आतमा । ज्ञान अबोधता जाईरे ॥ ( वी० तु० ) ॥६७॥ ( क्षी पर०)॥ ॥ इति सातमी श्रीज्ञानपद कलश पूजा सं० ॥१॥