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रत्नसागर.
जीवको । वसीयो नवमास ॥ १ ॥ ० ॥ नार तणी नाजीतले । जिन व चनें जोय । फूलती जिम नालिका । तिम नामी है दोय ॥ २ ॥ ० ॥ तसुतल जोनि कहीजिये । वर फूल समान । प्रां तणी मांजर जिसो । तिहां मांस प्रधान ॥ ३ ॥ ८० ॥ रुधिर श्रवै तिहां मांसथी। रितुकाल स ara | रुधिर शुक्र जोगे करी । तिहां नपजै जीव ॥ ४ ॥ ० ॥ जे प्र पावन पवनें करी । वासित दुरगंध । तिणथानक तूं ऊपनो । हिव हू अंध मंध ॥ ५ ॥ न० ॥ नामी वांसतणी घणुं । नरीयै रूवाल । तातीलोह सिलाकतें । जालै ततकाल ॥ ६ ॥ ० ॥ तिम महिलानी जोन में । बै नव लख जीव । पुरुष प्रसंगे तेसहू । मरि जाय सदीव ॥ ७ ॥ नं० ॥ ऊपजै नर नारी मिल्यां । पांचेइंद्री जेह । तेह तणी संख्या नही । तजो कारज एह ॥ ८ ॥ ८० ॥ नवलख जीव टिकै तिहां । उत्कृष्टीवार । जीव जघन्य पर्णे टिकै । एक दोय त्रिण च्यारि ॥ ९ ॥ ० ॥ जीव जघन्य तिहां रहे । महुरत परिमाण | बार बरसनी थिति तिहां । उत्कृष्टी जाण ॥ १० ॥ ० ॥ तिहां गरनै कोइ जीवको । जंपै जग दीस। फिर नर आावंतो रहे । संबत्सर चोवीस ॥ ११ ॥ ८० ॥ महिला वरस पिचावनें । कहीयै नीरबीज । पिचहत्तर वरसां परै । थायै पुरुष बीज ॥ १२ ॥ ० ॥ जी मी खै नर बसे । तिम बामें नारि । बीच नपुंसक जाणीयै । जिन वच न विचार ॥ १३ ॥ ० ॥ हिव सामान्य पणें इहां । यो गरनावास ! सातदिना ऊपरि रहे । नरगत नवमास ॥ १४ ॥ ० ॥ आठ बरस तिर यंच रहे । नत्कृष्टे काल । गरना वासै जोगव्यां । इम बहु जंजाल ॥ १५ ॥ ० ॥ कारमण कायें कर लीयो । पहिलो प्रहार । शुक्र पर्ने श्रोणित तणो | नही झूठ लिगार ॥ १६ ॥ ० ॥ परजापत पूरी नही । तिहां वि सवा वीस | ति प्राहारै तुथयो । कदारक सीस ॥ १७ ॥ ० ॥ पवन अनदरे तिको । ऊपजायै अंग । अगनिकरे थिर तेहनें । जब सरस सुरंग ॥ १८ ॥ ० ॥ कठन पण प्रथवी रचे । अवगाह आकास | पांच नूत शरीरमें । इम करै प्रकाश ॥ १९ ॥ ० ॥ बारै महुरत तां पढे । वि लसै नरनारि । गरनतणी उतपति तिहां । नही अवर प्रकार ॥ २० ॥