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गर्नाधान नतपत्तिविचार सिशाय. ३०१ नु० ॥ कलिल हुवै दिन सातमै । अबुद दिन सात । अरबुदथी पेसी वधै। घनमांस कहात ॥ २१॥न ॥ मांसतणी बोटी हुवै । अमताली स टंक । प्रथम मास जिनवर कहै। मन धरो निस्संक ॥ २२ ॥ न०॥ सुथिर मांसबीजै हुवै। हिवै तीजै मास । करम तणे वसि ऊपजै । मा ता मन आस ॥ २३ ॥१०॥ चोथै मासै मातना । प्रणमें सहु अंग । हाथ अर्ने पग पांचमें । तिम सुतकोसंग ॥ २४ ॥ न० पित्त रुधिर बडे पमै। सातमें इण संच । नव धमणी नस सातसै। पेसी सय पंच ॥२५॥ न०॥ रोमराय पिण सातमें। साढी तीन कोमि । नपजे कणे केतले । इम आगम जोड ॥ २६ ॥न आठमै मासे नीपनो। इम सकल शरीर । कंधै शिर वेदन सहै। जंपै जिनबीर ॥ २७॥ न ॥शोणित शुक्र सले षमा। लघुनें वमनीत । वात पित्त कफ गरनथी। थायै नरनीत ॥२८॥ न०॥ मात तणी सुंहटी लगै। बालकनो नाल । रस आहार करै तिहां। आवै तत काल ॥२९॥ न० ॥ जननी ल्यै आहार ते । जाय नाडो ना ड। रोम इंद्री नख चख बधैं । तिम मीजीने हाम॥३०॥न० ॥ सबहु अंगै ऊलसै । सरबंग आहार । कवल आहार करै नहीं। गरनै सुविचार ॥३१॥०॥मास बीजै किण जीवनें । थायें ज्ञान विनंग। अथवा अवधि कही जीयै । तिण ज्ञान प्रसंग ॥ ३२ ॥ न० ॥ कटक करै वैक्री यपणें । झुमी नरकै जाय। को जिन वचन सुणी करी । मरी सुर पिण थाय ॥३३॥ न० ॥ कंधैमुख गोमा हीयै । सहि तो बहु पीक । दृष्टि आगलि विहुं हाथमुं। रहै मुहीनीम ॥ ३४॥ न० ॥ नरविण वस्त्र ज लादिक । ऊपजै आधान । अथवा बिहुँ नारी मिल्यां । कह्यो गरन विधान ॥३५॥ न०॥कोई नत्तम चिंतवै। देखी मुख वास । पुन्य करी तिम नीकलं । नाकं गरजावास ॥३६॥ १० ॥ ऊंठकोमि चांपै सुई। कोई समकाल। तिणथी गरनै अठगुणी। सहै वेदन बाल ॥३७॥१०॥ माता नूखी नूखीयो । सुखणी मुखथाय । माता सूती ते सूवै । परवस दि न जाय ॥३८॥१०॥गरज थकी मुख लखगुणो । जामें जिनवार । जन्मथयां मुख वीसरे । धिम् मोह विकार ॥ ३९॥ १०॥ नपज्या अशु