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रत्नसागर.
चि पणै जिहां । मल मूत्र कलेस । पिंम अशुचि करि पूरीयो । किहां सुचि लवलेस ॥४०॥ न०॥ तुरत रुदन करतो थको। जामें जिणवार । मात पयोधर मुख ठवै । पीय दूध तिवार ॥ ४१ ॥ न दिन दिन दीसै दीपतो। करै रंग अपार । लाम कोम माता पिता । पूरै सुविचार ॥ ४२ ॥ न० ॥ श्रोत्र इग्यारै नारिने । नव नरने जाण । रात दिवस वहिता रहै । चेतो चतुर सुजाण ॥ ४३ ॥ नु० ॥ सात धातु साते त्वचा। चै सातसै नाम । नवसे नाडी पिंममैं । तिम तीनसै हाम॥४४॥ न०॥ संधि एकसो साग्छ । सत्तोत्तरसो मरम । तीन दोष पेसी पांचसै । ढांकी चरम ॥ ४५ ॥ न०॥ रुधिर सेर दस देहमें । पेसाब सरीष । सेर पांच चरवी तिहां । दोय सेर पुरीष ॥ ४६ ॥ ॥ पित्त टांक चोसठ अ । वीरज बत्तीस । टांक बत्तीस सलेखमां । जाणे जगदीस ॥४७॥०॥ण परमाण थकी यदा।
छो अधिको थाय । ब्यापै रोग शरीर में । नवि चालै काय ॥४८॥न ॥ पोख्यो पहिलै दाहकै । इम वधियो अंग। खान पान चूषण जला । करे नवनवा अंग ॥ ४९ ॥ १० ॥ हिव बीजै दसकै लण्यो। विद्या विवध प्र कार । तीजै दसकै तेहनें। जाग्यो काम विकार ॥ ५० ॥न ॥ जिण था नक तुं ऊपनो। तिणमें मन जाय । चौथे दसकै धन तणो । करै कोमि न पाय ॥५१॥ नु०॥ पहुतो दसकै पांचमैं । मनमें ससनेह । बेटाबेटी पो तरा । परणावै तेह ॥ ५२॥ न०॥ दसके प्राणीयो । वले परवस था य। जरा आवी जोवन गयो। तृष्णा तोही न जाय ॥५३॥ नु०॥आवै दसकै सातमें । हिव प्राणी तेह । बल नागो बूढो थयो । नारी न धरै स नेह ॥ ५४॥ न० ॥ आठमें दसकै मोसलो । खुलिया सहु दांत । कर कंपावै सिर धुणे । कर फोकट वात ॥ ५५ ॥ १० ॥ नवमें दसकै प्राणी यो। तन सूकत जाय । साले वचन बहुवां तणां । दिन झूरतां जाय ॥५६॥ १०॥ खाट पड्यो ५ रखू करै। सहु गाली देह । हाल हुकम हालै नहीं। दीयो परजन नेह ॥ ५७॥ ॥ आंख गलै बेपुम मिले। पके मुंहमै लाल। बेटा बेटीने बहू । नकर. सार संजाल ॥ ५८॥ १० ॥ दसमें दसकै आवीयो। तब पूरी आय । पुण्य पाप फल नोगवी । प्राणी