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गर्भाधान नतपत्तिविचार सिझाय.
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परजव जाय ॥ ५९ ॥ ० ॥ दस दृष्टांते दोहिलो । लह्यो नर व सार । श्री जिन धरम समाचरो । पामो जिम जवपार ॥ ६० ॥ ० ॥ चरण पर्णे जे तप तपै । पालै निरमल शील । ते संसार तरी करी । लहै अविच ल लील ॥ ६१ ॥ ० ॥ कोमि रतन कवमी सटे । कांई गरे गिंवार | धरम खै पि जीवनें । नही कोई आधार ॥ ६२ ॥ न० । काया माया कारमी । कारमो परिवार । तन धन जोवन कारिमो । साचो धरम संचार ॥ ६३ ॥ ० ॥ चवदै राज प्रमाण ए । बै लोक महंत । जनम मरणकरि फरसियो । तेवार प्रांत ॥ ६४ ॥ ० ॥ आप सवारथिया सहू । न ही केहन कोय। विण स्वास्थ अण पूजतां । सुत पिए वेरी होय ॥ ६५ न० ॥ जरा न आवै जांलगे। जांलग सबल शरीर । धरम करो जीवतां ज गे । होइ साहस धीर ॥ ६६ ॥ ० ॥ आरजदेस लह्यो हिवै । लाधो गुरु संयोग । अंग थकी आलस तजो । करो मुक्कृत संयोग ॥ ६७ ॥ ० ॥ श्री नमिराय तणी परै । चेतो चित मांहि । स्वारथना सहुको सगा । को ई किणरो नांहि ॥ ६८ ॥ ० ॥ जोग संजोग तजीसहू । थया जे गार धन धन तसु माता पिता । धन धन अवतार ॥ ६९ ॥ ० ॥ सुरतरु सुरमणि सारिखो । सेवो जिन धरम । जिणथी सुख संपति वधै । कीजे तेहिज क र्म ॥ ७० ॥ ० ॥ तंडुल वेयाली । एहनो अधिकार | तिथी कध रने को । नहीं ऊठ लिगार ॥ ७१ ॥ ० ॥ ( कलश ) इह जेनधर्म विचार सांजलि लीये संयम जार ए । परि सींह केरा सदा पालै नेम नि रती चार ए । संसारना सुख सकल जोगवि ते लहै नवपार ए । न हरष सुसीस रंगै इम कहै श्रीसार ए ॥ ७२ ॥ ८० ॥ ॥ इति उपदेश वहुत्तरी संपूर्ण ॥ ॥
श्रीजि
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॥ अथ बिजय सेठ विजयासेगणीको चोढालियो लि० ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॥ प्रह ऊठीरे पंच परमेष्टि सदा नमुं । मनसूधैरै तेहनें चरणे नित नमुं । धुरि तेहनें रे अरिहंत सिद्ध वखाणियै । आचारजरे उपाध्याय मन प्राणियै । ( नव्वालो) आणियै निज मन नाव सुद्वै नृपाध्याय नर्मू बली । जे पनरह करम जूमि मांहे साधु प्रणमुं ते वली । जिम कृष्ण