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२० स्थानक आरती, नंदीश्वर पूजा. ६३५ ॥ॐ॥अथ वीशस्थानककी आरती लि०॥ * ॥
॥जीया चतुर सुजाण नवपदके गुन गायरे ( एचाल )॥ * ॥ पियाविंशतिथान मंगल आरती गायरे (आं०) सुमति प्रिया कहै चेतन पति को । निसुण वचन मननायरे॥ पि० ॥१॥ यदि निजगुण परणति तुमचहीये तिनको एह नपायरे।।पि०)॥आरहंत सिघ आचारिज पाठक । सा धु सकल समुदायरे ॥ पि०॥२॥ इत्यादिक विंशतिपद समरण । नवनय । हरण विधायरे ॥ पि०॥ एह आरती पुरति वारती । अनुपम सुरसुखदा यरे ॥ पि० ॥ ३॥ जैसें लगतै करत आरती । सकल मुरा सुर रायरे ॥ पि० ॥ तैसें वितुमे करन आरती । एपद गुण चितलायरे ॥ पि० ॥४॥ पंच प्रदीप से करय आरती । जेनित चित नलसायरे ॥ पि० ॥ तेलही पं च चिदा नंद घनता ॥ अचल अमर पद पायरे ॥ पि० ५॥ पंचप्रदीप अखंमित ज्योते । पुरमती तिमिर विलायरे॥पि०॥ एहआरती तुरत तारती। जवजल निपतत घायरे ॥ पि० ॥६॥ पद जिनहरषतणी एकरणी। मन हरणी कहिवायरे ॥ पिया०॥ चंद्र विमल शिव सिधि निधि धरणी। वरणी किणविध जायरे ॥ पि० ॥७॥ इति वीश थानक आरती संपूर्णम् ॥१॥
॥अथ स्नग्धरा बंद काव्य तीन ॥ ..॥ ॥ योजीमुतां जनोघां, जन गिरिसदृशां, काग्निकेतु प्रमुक्तो । दुर्वार स्फार पंको कट तर समर, वातता गम्परूपा । अव्याबाधा व्ययो द्यत् पर म पद दशां सदशां योविनर्त्त । योनित्यं दायिकाख्या दय विमल लसत्तै लपूर्ति दधानः ॥ १ ॥ स्वानादौ दामध्वामो बलद तुलकल प्रज्वल जात वेदो । ज्वाला माला कुलांगा जनित जव महा रण्य जातंक संगाः । यत्रा नेके पतंगाः कुमत मिमतयो जीजननष्टरंगा । नस्मी नावं स्वकीयं सकल जयहरः शंकर प्राणनाजां॥ २ ॥ प्रघस्तां नंतचंच किरण गणलस त्सप्त संतिप्रतापो । लोका लोकाव लोका स्खलित विमलतो दग्रजायत्प्रकाशः। त्रैलोक्या नंदन स्सप्रकृत कुशल नंदन श्चामरेंदै । श्रीवामानंदनोयं जगति विजयतां जैनचंद्रः प्रदीपः॥३॥ त्रिनिर्विशेषकं॥ * ॥इति॥॥ यह तीन काव्य आरती कियां पीजे दोनुं हाथ जोडके कहै ॥